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जब एक 'हंस' ने मामले को सुलझाया।


                         बड़ा कौन है- मारने वाला या बचने वाला? इसका निर्णय हंस ने किया। 


                         शुधोधना एक महान राजा था।  एक दिन वे अपने सिंहासन पर बैठे थे। उनके दरबारमें उनके मंत्रि भी मौजूद थे। वे राज्य के मामलों पर चर्चा कर रहे थे। तभी उनके द्वारपाल दरबार में प्रवेश किया। उन्होंने राजा को देव दत्त के आगमन के बारे में राजा को सूचित किया। राजा ने उनको दरबार में आने की अनुमति दे दी और देव दत्त ने दरबार में प्रवेश किया।

देवदत्त  ने राजकुमार सिद्धार्थ के खिलाफ शिकायत की। उन्होंने राजा से कहा कि सिद्धार्थ ने उसका हंस ले लिया है।  उन्होंने दावा किया कि हंस उनका था क्योंकि उसने इसे गोली मारी थी। उसने न्याय के लिए राजा से प्रार्थना की

राजा ने सिद्धार्थ को दरबार में बुलाया सिद्धार्थ ने हंस के साथ दरबार  में प्रवेश किया सिद्धार्थ ने राजा को बताया कि उसने इस हंस को बचाया है इस लिये यह मेरा हुआ।

यह एक अजीब मामला था। राजा इसे तय करने में असमर्थ था वह उलझन में था राजा ने अपने मुख्यमंत्री को इस मामले की सुनवाई करने और मामला हल करने का आदेश दिया।                                                                                                                                                                          
मुख्यमंत्री ने सिद्धार्थ को स्टूल पर हंस को रखने के लिये कहा। देवदत्त ने उस हंस को बुलाया।  हंस डर से काँपने लगा और भय से रोया।

अब राजकुमार सिद्धार्थ की बारी थी।  उसने उस हंस को बुलाया तब हंस उड़कर सिद्धार्थ के हाथों में जाकर बैठ गया।  मामला सिद्धार्थ के पक्ष में तय किया गया। और हंस उसे दे दिया गया।

                             इसी लिए कहा गया है कि हमेशा मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है। 

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