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ताजमहल का इतिहास.HISTORY OF TAJMAHAL.

                                ताजमहल का इतिहास 

आज मैं आप लोगों के साथ ताजमहल से जुडी बहुत सारी जानकारियां दुँगा जिसके बारे में कम ही लोगो को पता होगा।  
                  साथियों जैसा की मैंने पिछले लेख में आपको यह बता चूका हूँ क़ि इतिहास में ताजमहल का वर्णन रोजा -ए - मुनव्वर (चमकती समाधि) के रूप में हुआ है। समकालीन इतिहासकारों जिनमें शाहजहाँ के दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने किताब 'पादशाहनामा' में इसका वर्णन किया है। अपने इस लेख में ताजमहल के निर्मांण के सम्बन्ध में विस्तार से उल्लेख किया है।

बुनियाद और नींव -:

शाहजहाँ के गौरावशाली राज्यारोहण के पांचवे वर्ष (जनवरी,1632) में बुनियाद डालने के लिए यमुना के किनारे खुदाई का कम आरम्भ हुआ। बुनियाद खोदने वालों ने पानी के तल तक जमीन  खोद डाली। फिर राजमिस्त्रियों ने तथा वास्तुकारों ने अपने विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए इसकी मजबूत बुनियाद डाली तथा पत्थर और चुने की मदद से उसे जमीं तक ले आए। 
इसके ऊपर ईंट और चुने की मदद से ऊँचा चबूतरा का निर्माण किया गया। यही चबूतरा इस ईमारत का प्लिंथ ( कुर्सी) बना। सहायक  भवनो सहित मुख्य ईमारत ताजमहल की मुख्य ईमारत की सम्पूर्ण योजना आयताकार है। यह चारों और से ऊँची दीवारों से घिरा  हुआ है इसके चारो और मेहराब युक्त मंडप हैं।
दोस्तों इस ईमारत को बनाने के लिए पुरे मुग़ल साम्राज्य के कोने -कोने से पत्थर काटने वाले,मणिकर, और पच्चीकारी करने वाले बेहतरीन कारीगरों को इकट्ठा किया गया जिन्होंने मिलकर काम किया। प्लिंथ का फर्स भी लाल पत्थर का बना हुआ है।
               इस प्लेटफॉर्म प्लिंथ के बिच में एक और मजबूत चबूतरा(कुर्सी) बना हुआ है। इसका क्षेत्रफल 120 हाँथ तथा ऊंचाई 7 हाँथ है। यह पूरी तरह से संगमरमर से ढका हुआ है। सुंदरता में इसकी तुलना स्वर्ग की सिघासन से की गई है। इस दूसरे प्लेटफॉर्म के मध्य में विशाल और भव्य समाधि की इमारत बनाई गई है।
               ईमारत के मध्य में कब्र के ऊपर संगमरमर का  गुम्बदनुमा हाल बना हुआ है। सतह से गोलार्ध(जिह) तक गूमबद के निचे बना हाल अष्टकोणीय है। और इसका क्षेत्रफल 22 हाँथ है।
                इस अंदरुनी गुम्बद के ऊपर अमरुद के आकर का एक और विशाल गुम्बद बनाया गया है। इस विशाल गुम्बद बाहरी वृत्त 110 गज है और इस पर 11 गज ऊँचा स्वर्ण कलश लगा हुआ है  जो सोने की तरह चमकता है। जमीं से इसकी ऊंचाई 107 गज है।
                इस गुम्बद के बिच में उस महान महिला की कब्र (मजिया) है। इनका स्थान स्वर्ग में भी सरोपरि है। इस कब्र पर अल्लाह का करम है। और महानमलिका का ईश्वरीय शक्ति से मिलन हो चूका है।
                स्वर्ग के इस निवासी की वास्तविक कब्र (तुर्बत) के ऊपर संगमरमर का चबूतरा बना है। जिसका एक छत्तरी (सूरत - ए - गब ) बनाई गई है। इसके चरों और अष्ट कोणीय जाली लगी हुई है। यह भी संगमरमर से बनाई गई है। और इस पर तुर्की सैली में अलंकरण किया गया है। इसे बनाने में उस समय 10,000 रुपये खर्च हुए थे। जमीन से 23 गज ऊपर उठे संगमरमर के चबूतरे (कुर्सी ) के चरों और मीनारें कड़ी हैं। जिनमें अंदर की और सिंढ़या बनी हुई है, और ऊपर छतरी सी बनी हुई है। इसका आधार 8 फिट है। और चबूतरे से कलश तक इसकी ऊंचाई 52 फिट है। ऐसा लगता है मानों स्वर्ग की और जाने के लिये सिंड़ीया लगाई गई है।
             मुमताज महल की असली कब्र नीचे तःखाने के बीचो-बिच निर्मित है। 1666 ई. में शाहजहाँ को भी ताजमहल में ही मुमताज के बगल में दफन दिया गया। मुमताज एवम् शाहजहाँ की कब्रें संगमरमर की बानी हुई है। और इन पर सुन्दर जड़ाउ काम हुआ है।
              स्वर्ग के समान प्रतीत होने वाली इस समाधी के चबूतरे का रास्ता भी संगमरमर निर्मित है। काले पत्थरों और सफ़ेद संगमरमर का सुन्दर समन्वय इसका आकर्षण और भी बढ़ा देता है। और यह दिन हो या रत हमेशा चमकता रहता है।
              दोस्तों इस समाधि की तारीफ शब्दों में कर पाना बहुत मुश्किल है। ताजमहल का अंदर का भाग हो या बाहर का भाग हो इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। इसको बनाने में कलाकारों ने आश्चर्य और चमत्कार से भरी कारीगरी रंगो और बहुमूल्य जेवरातों का प्रयोग किया जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। इसमें जड़ी मोती का उल्लेख शब्दों में नही किया जा सकता है। दोस्तों इसकी चमक के आगे सूरज की चमक भी फीकी पड़ जाती है। यह ईमारत कल्पना और इसके चमत्कार को समझ पाना मानव-बुद्धि की सीमा से परे है। इसका फर्श सोने की तरह बहता नजर अता है इसका वर्णन न कभी पूरा हो सकता है, न समाप्त हो सकता है।

              इस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद।
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