रबीन्द्रनाथ टैगोर
रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 को कोलकता में हुआ था। उनके पिताजी का नाम देवेन्द्र नाथ टैगोर तथा उनके माताजी का नाम शारदादेवी था। बचपन में टैगोर जी को उनके परिवार वाले रवि नाम से बुलाते थे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति से बहुत प्यार करते थे। वे जब भी नीला आकाश, गुनगुनाते हुए पक्षियों, जंगलों की। हरियाली तथा अन्य कई प्रकार के प्राकृतिक वस्तुओं को देखते थे तो वे बहुत अचंभित भाव से सम्मोहित हो जाते थे। उनको यह पृथ्वी बहुत सूंदर तथा आकर्षक दीखता था। वे बहुत ही कल्पनाशील थे और उन्होंने मात्र 8 वर्ष के उम्र में ही कविता लिखना आरम्भ कर दिआ था। तब उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह लड़का आगे चलकर एक महान लेखक, कलाकार, और महान विचारक बनेगा।
उन्होंने 1868 में स्कूल में प्रवेश लिया। वे स्कूल के वातावरण को पसंद नहीं करते थे। स्कूल में वे अपने आपको एक कैदी की तरह महसूस करते थे, क्योंकि उनके क्लास की दीवारों पर घर की तरह खिड़की नहीं थे, जिनसे वे बाहर को देख सकें। पाठ उबाऊ लगता था। उनको कई बार स्कूल कार्य को नहीं करने के लिये दण्डित भी किया गया था। इस कारण उनको स्कूल से निकाल दिए जाता था तथा अन्य स्कूल में भेज दिया जाता था।फिर उनके बड़े भाई हेमेन्द्र ने स्वयं उनकी पढाई की जिम्मेदारी ले ली।
अब टैगोर के अंदर एक तेज बदलाव हुआ। वे अब कुश्ती, ड्राइंग, जिम्नास्टिक, संगीत, और विज्ञान में ज्यादा रूचि लेने लगे। उनके पास काव्य और संगीत की प्रतिभा जन्म से ही था। उनकी कविता लेखन की प्रतिभा को देख कर माता- पिता बहुत खुश थे। उनको 17 साल की उम्र में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। जब वे भारत लौटे तो पूरी तरह से एक लेखक और कलाकार के रूप में बदल चुके थे।
1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी जी के साथ हुआ। कुछ समय बाद एक स्कूल की स्थापना की जिसका नाम शांति निकेतन रखा। यह स्कूल प्रकृति के बिच में था। स्कूल के क्लास खुली वातावरण के बिच में पेड़ों के निचे लगाया जाता था। उनको स्कूल के विकाश में बहुत संघर्स का सामना करना पड़ा। परंतु वे संतुष्ट थे क्योंकि उनको वह पवित्र लगता था। उनका यह कार्य पूर्ण हुआ जब शांति निकेतन अब बदलकर' 'विश्वभारती विश्वविद्यालय' हो गया तथा28 दिसंबर 1921 को राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। वे अपने विचरों, आइडिया, दृष्टि, और स्वप्न को कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक, गीत तथा चित्र के माध्यम से सफलता पूर्वक दिखाते थे। हमारे देश के राष्ट्रगान जन गण मन की रचना उनके द्वारा ही किया गया है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उनसे बहुत प्रभावित हुए। वे टैगोर जी को 'गुरुदेव' बुलाते थे।टैगोर जी भी गांधी जी को बहुत आदर देते थे और उनको 'महात्मा'नाम दिया। टैगोर जी को 1913 में उनके महान काव्य रचना 'गीतांजलि'के लिए साहित्य का नोबल पुरुष्कार प्रदान किया गया। वे पहले एशियन व्यक्ति थे जिनको यह पुरुष्कार प्राप्त हुआ था।
वे 7 अगस्त 1941 को हम सबको छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। उनको विश्व के सभी लोग हमेशा याद रखएंगे।
धन्यवाद।
उन्होंने 1868 में स्कूल में प्रवेश लिया। वे स्कूल के वातावरण को पसंद नहीं करते थे। स्कूल में वे अपने आपको एक कैदी की तरह महसूस करते थे, क्योंकि उनके क्लास की दीवारों पर घर की तरह खिड़की नहीं थे, जिनसे वे बाहर को देख सकें। पाठ उबाऊ लगता था। उनको कई बार स्कूल कार्य को नहीं करने के लिये दण्डित भी किया गया था। इस कारण उनको स्कूल से निकाल दिए जाता था तथा अन्य स्कूल में भेज दिया जाता था।फिर उनके बड़े भाई हेमेन्द्र ने स्वयं उनकी पढाई की जिम्मेदारी ले ली।
अब टैगोर के अंदर एक तेज बदलाव हुआ। वे अब कुश्ती, ड्राइंग, जिम्नास्टिक, संगीत, और विज्ञान में ज्यादा रूचि लेने लगे। उनके पास काव्य और संगीत की प्रतिभा जन्म से ही था। उनकी कविता लेखन की प्रतिभा को देख कर माता- पिता बहुत खुश थे। उनको 17 साल की उम्र में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। जब वे भारत लौटे तो पूरी तरह से एक लेखक और कलाकार के रूप में बदल चुके थे।
1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी जी के साथ हुआ। कुछ समय बाद एक स्कूल की स्थापना की जिसका नाम शांति निकेतन रखा। यह स्कूल प्रकृति के बिच में था। स्कूल के क्लास खुली वातावरण के बिच में पेड़ों के निचे लगाया जाता था। उनको स्कूल के विकाश में बहुत संघर्स का सामना करना पड़ा। परंतु वे संतुष्ट थे क्योंकि उनको वह पवित्र लगता था। उनका यह कार्य पूर्ण हुआ जब शांति निकेतन अब बदलकर' 'विश्वभारती विश्वविद्यालय' हो गया तथा28 दिसंबर 1921 को राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। वे अपने विचरों, आइडिया, दृष्टि, और स्वप्न को कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक, गीत तथा चित्र के माध्यम से सफलता पूर्वक दिखाते थे। हमारे देश के राष्ट्रगान जन गण मन की रचना उनके द्वारा ही किया गया है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उनसे बहुत प्रभावित हुए। वे टैगोर जी को 'गुरुदेव' बुलाते थे।टैगोर जी भी गांधी जी को बहुत आदर देते थे और उनको 'महात्मा'नाम दिया। टैगोर जी को 1913 में उनके महान काव्य रचना 'गीतांजलि'के लिए साहित्य का नोबल पुरुष्कार प्रदान किया गया। वे पहले एशियन व्यक्ति थे जिनको यह पुरुष्कार प्राप्त हुआ था।
वे 7 अगस्त 1941 को हम सबको छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। उनको विश्व के सभी लोग हमेशा याद रखएंगे।
धन्यवाद।
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