31/12/16

बुद्धिमान बीरबल the witty birbal

                   दोस्तों आज मैं आप लोगो को बीरबल की चतुराई से संबंधित एक कहानी बताता हूँ।
             बीरबल अपनी बुद्धि और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। उसकी बुद्धि की खबरें आम हैं। अक्सर लोग उसकी बुदधि, कार्य और निर्णय के बारे में बात करते हैं। उसका नाम सम्मान और आदर के साथ याद किया जाता है। वह सम्राट अकबर के दरबार में नौ रत्नों में से एक था। राजा उसे हमेशा याद करता  जब भी वह मुश्किल में होता था।
            वहाँ अकबर के खज़ाने में सोने, मोती और हीरे के कई अंगूठी थे। उनको एक अंगूठी सबसे ज्यादा पसंद था। इसके केंद्र में एक बड़ा हीरा और उसके चारों ओर मोतियों से जड़ा था। आठ सेवक उसके कीमती कपड़े और आभूषणो के रखवाली का काम देखते थे । वे वफादार सेवक थे। और वे राजा को दरबार के लिये तैयार भी करते थे। किसी को भी उस अंदरूनी कमरे में जाने की अनुमति नहीं होती थी। राजा को अपने सेवकों पर भरोसा था।
            यह एक विशेष अवसर था।अदालत में बैठक  आयोजित किया गया था। अकबर इस अवसर पर अपनी वाही पसंदीदा अंगूठी को पहनना चाहता था। अकबर सेवकों में से एक से कहा, सबसे खूबसूरत अंगूठी ले आओ।
सेवकों को पता था कि कौन अंगूठी लाया जाना था। वह जवेलरी वाले कमरे में चला गया। वह अंगूठी खोजने का बहुत प्रयास किया किंतु वह अंगूठी को खोजने में सफल नहीं हुआ।  वह वापस राजा के पास गया। राजा से कहा, "महाराज! मैं अंगूठी नहीं ला सकता हूँ । मैं नहीं जानता कि वह कहाँ है।"
             अकबर दुखी हो गया। अंगूठी कौन चुरा लिया एक रहस्य था। वह अंगूठी के खोज करने के लिए अपने मुख्यमंत्री का आदेश दिया। लेकिन मुख्यमंत्री भी काम नहीं कर पा रहा था। हर एक को पता था कि केवल बीरबल समस्या का समाधान कर सकता है। जब भी इस तरह की समस्या उठी है बीरबल ने ही समस्या का हल निकाला है। कैसी भी समस्या थी, बीरबल यह कुछ ही समय के भीतर हल किया।
बीरबल कर्मचारियों से जो खजाना को देख रहे थे बुलाया। प्रत्येक सेवकों को एक ही आकार की एक-एक छड़ी दी गई। ।        
              बीरबल ने कहा अंगूठी चोर की छड़ी एक इंच रात को बढ़ जाएगा।  उन्होंने अगले दिन सभी को छड़ी के साथ वापस आने के लिए कहा ।
              अगली सुबह सभी नौकर दरबार में आए । सेवकों में से एक की छड़ी दूसरों के उन लोगों की तुलना में एक इंच कम था।वह नौकर जो अंगूठी चोरी की थी एक इंच से अपनी छड़ी में कटौती की थी। वह पकड़ा गया।
               उसने अपने अपराध कबूल कर लिया। उसने सोचा था कि अपनी छड़ी वास्तव में एक इंच बड़ा हओ जाएगा जैसा कि बीरबल ने कहा था, इसलिए वह पकड़े जाने के डर से बचने के लिए छड़ी को काट दिया था।
                इस तरह हर एक ने  बीरबल की सराहना की और राजा अकबर ने उसे पुरस्कृत किया। 

29/12/16

Witty birbal चतुर बीरबल Story

         
 Birbal was famous for his wit and wisdom. Stories of his wit are common. Often people talk about his witty acts and judgements. His name is remembered with respect and regard. he was one of the nine gems in the court of Emperor akbar. the king always asked for him whenever he was in difficulty.
There were many rigs of gold, pearl and diamond in the treasury of Akbar. He liked one ring the most. It was one with a latge diamond at the centre and pearls around it. Eight servants looked after his precious clothes and jewellery. They were considered loyal servants. They also helped the king to get ready for the court. Nobody else was permitted to enter he's inner apartment. The king had full faith in his servants.
It was a special occasion. Ameeting was to be held in the court. Akbar wanted to wear he's favourite ring. Akber saed to one of the servants, Bring the most beautiful ring .
The servants knew which ring had to be brought. Hi went into the jewllery toom. He tried he's best to find the ring. When he could not fined it, he went back to the king. Hi said to to the king, "your majesty! I could not find the ring. I don't know where it is."
akbar became sad. Who stole the ring was a mystery. he ordered his Chief Minister to search for the ring. But the Chief Minister was also unable to do the job. Eviry one knew that only birbal could solve the problem. Whenever a problem like he's arose Birbal coud sove the problem. however difficult the problem was, birbal solved it within no time.
birbal called the servants who were looking after the treasury. Each servants was given a stick of the same dize. Birbal told the servant that the stick of the thief of the ring would grow by one inch that night. he asked them to come back with the stick the next day.
The servant came the next morning. the stick of one of the servats was shorter than those of rhe others. The servant who had stolen the ring had cut his stick by one inch. He was caught. He confessed his guilt. He had thought that his stick would really grow by one inch as Birbal had said, so he had cut it to avoid getting caught.
every one applauded Birbal and the king rewarded him

परमाणु बम और हाइड्रोजन बम में अंतर Diffrence between Atom bomb and hydrojan bomb


          दोस्तों आज मैं आप लोगों को बहुत ही विनाशकारी बमों परमाणु बम तथा हाइड्रोजन बम की सामान्य जाकारी  देने जा रहा हूँ। दोस्तों जैसा की आप जानते है की ये दोनों ही बम बहुत ही विनाशकरी होते है तथा दोनों के इस्तेमाल से पूरी मानव जाती का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है। इसीलिए इसके अप्रसार के लिए कई प्रयास हो रहे हैं तथा कई अंतराष्ट्रीय संधि किए गए हैं। 
          दोस्तों इन दोनों बमों के निर्माण का तरीका भी अलग अलग होता है चलिये इसी को समझते हैं। 
1.परमाणु बम :-इसे Nuclear Bomb या Atom bombभी कहते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियापर आधारित होता है। इसमें U-235 ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस पर न्यूट्रान की बमबारी से यह क्रिया शुरू हो जाती है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा U-235 युक्त परमाणु बम (लिटिल बॉय) तथा नागाशाकी पर pu-239 से युक्त परमाणु बम (फैटमैन) गिराया था जिनमें लाखों लोगों की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था।

2. हाइड्रोजन बम - यह नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पर आधारित होता है। इसके लिए उच्च ताप व उच्च दाब की आवश्यकता होती है। अतः हाइड्रोजन बम बनाने के लिए पहले परमाणु बम बनाया जाता है, जो उच्च कोटि का ताप व दाब उत्पन्न करता है। फलस्वरूप हाइड्रोजन के नाभिक एक - दूसरे के अत्यन्त निकट आ जाते हैं और संलयित (जुड़) हो जाती है। इस क्रिया में अत्यधिक ऊर्जा निकलती है। हिड्रोजन बम, परमाणु बम से कहीं  अधिक विनाशकारी होता है परमाणु बम का आकार एक सिमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता लेकिन हाइड्रोजन बम का आकार कुछ भी रखा जा सकता है।जिससे इसकी विनाश की क्षमता और बढ़ जाती है। 

15/12/16

महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह का आखरी पत्र

           दोस्तों आज मैं भगत सिंह के उस आखरी पत्र के बारे में जानकारी दे रहा हूँ जिसे उन्होंने फंसी पर चढ़ने से ठीक एक दिन पहले लिखा था। साथियों मेरा आपसे विनम्र गुजारिश है अगर आपके दिल में हमारे शहीदों के प्रति जरा भी सम्मान है तो इसे जरूर पढें। साथियों भगत सिंह ने  जब यह पत्र लिखा था तो उनके मन में मौत का तनिक भी भय नही था और न ही फाँसी दिए जाने का पछतावा। उनके पत्र का जिक्र करने से पहले मैं आपको भगत सिंह के बारे में संक्षेप में कुछ जानकारी देना चाहता हूँ।
            दोस्तों हमारे देश के महान पुरुष क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर सन् 1907 को पश्चिम पंजाब के लायलपुर जिले के बंग गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार किशनसिंह था। बचपन से ही  क्रांतिकारी विचारों वाले भगतसिंह ने अपने जीवन में ब्रिटिश उपनिवेशवादी शक्तियों को तथा उसके साम्राज्य को उखाड़ फेकने का संकल्प ले लिया था। अपने क्रन्तिकारी साथियों -चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद 'बिस्मिल', अश्फाक उल्ला खाँ के साथ मिलकर उन्होंने एक  क्रांतिकारी संगठन 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' बनाया। साइमन कमीशन का बहिष्कार करते हुए इस संगठन ने लाला लाजपत राय के ऊपर हुए प्राणघातक हमले का विरोध किया। जिनका कुछ दिनों के बाद निधन हो गया।उन्होंने इस घटना के जिम्मेदार पुलिश अधीक्षक सांडर्स की हत्या कर इसका बदला लिया 8 अप्रैल सन् 1929 को एसेम्बली हॉल में बम फेककर 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाते हुए स्वयं को गिरफ्तार करवा लिया। उनको और उनके अन्य दो साथीयों रामप्रसाद बिश्मिल और अशफाक उल्ला खाँ को 23 मार्च सन् 1931 को फाँसी दे दी गई। बलिदान के एक दिन पहले अपने  क्रांतिकारी कैदी साथियों को लिखे हुए तीसरे पत्र से उनकी त्याग भावना,देश के लिए भक्ति और सर्वस्व समर्पण का दृढ संकल्प स्पष्ट प्रकट होता है। उनका चरित्र निश्चय ही प्रेरणा का स्रोत है।
            बलिदान से ठीक एक दिन पहले कैदी साथियों को लिखा गया अंतिम पत्र 

         साथियो !                                  22 मार्च, 1931
         स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता; लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
          मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतिक बन चूका है और  क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है - इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा हरगिज नहीं हो सकता। 
           आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं है। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहीर हो जाएंगी  और क्रांति का प्रतिक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए। लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए क़ुरबानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी। 
            हाँ, एक विचार भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरते पूरी कर सकता। इसके शिवाय मेरे मन में कभी लालच फाँसी से बचने का नहीं आया। मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा ? आज मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है, कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।

                                                                                                                                         आपका साथी

7/12/16

एकाग्रता:सफलता सफलता का मूलमंत्र

              सफलता के लिए एकाग्रता अनिवार्य 

दोस्तों आज मै एक कहानी के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास का रहा हूँ।वैसे यह कहानी तो बहुत पुरानी है, लेकिन इसका जो सार है वह आज भी प्रासंगिक है।
                यह कहानी भारतीय पौराणिक कथा महाभारत के एक प्रसंग पर आधारीत है। गुरु द्रोणाचार्य अपने आश्रम में सभी शिष्यों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दे रहे थे। गुरु द्रोणाचार्य ने  एक बार अपने सभी शिष्यों से उनकी परीक्षा लेना चाहा। उन्होंने अपने सभी शिष्यों से पेड़ पर बैठी चिड़िया के आँख पर निशाना लगाने को कहा। तीर छोडने से पहले अपने सभी शिष्यों से बारी-बारी से एक प्रश्न किया,और पूछा की बतओ तुमको पेड़ पर क्या क्या  दीख रहा है ?तब किसी शिष्य ने कहा पेड़ की डाली ,पत्ति आदि। किसी ने कहा पेड़ पर बैठी चिड़िया। एक ने कहा गुरुजी  मुझे आप, सभी शिष्य, चिड़िया सब दिख रहा है । लगभग सभी शिष्यों का यही जवाब था। किन्तु जब अर्जुन की बारी आई तो गुरु ने अर्जुन से भी वही सवाल दोहराया तो उसने कहा- गुरुदेव मुझे सिर्फ चिड़िया की आँख ही दीख रही है। अर्जुन की एकाग्रता को देख के गुरुजी समझ गए की सभी शिष्यों में केवल अर्जुन ही ऐसा है जो की चिड़िया की आँख में निशाना लगा सकता है, और सभी ने जब निशना साधा तो बिलकुल वैसा ही हुआ केवल अर्जुन का ही निशाना लक्ष्य को भेद पाया।
                  इस कहानी का एकमात्र सन्देश है - किसी भी वांछित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बहुत आवश्यक है। जीवन में सभी लोग सफल होना चाहते है, उनमें कई लोग लक्ष्य को पाने के लिये परिश्रम भी करते है, उनमें सहस भी होता है। किन्तु सफल नहीं हो पाते उनके असफलता का गहराई से विश्लेषण करने पर यह तथ्य सामने आता है कि उनके अंदर लक्ष्य के प्रति एकाग्रता का अभाव होता है।
                   काम के दौरान हमरा ध्यान भंग होता है,एकाग्रता नष्ट होती है, ऐसा क्यों होता है ? इसके कारण एवम् उसके निवारण पर यदि हम ध्यान दें तो कुछ प्रमुख बातें उभर कर सामने आती है। जिनकी व्याख्या हम निम्न बिन्दुओ के आधार पर कर सकते हैं।    
  • सकारत्मक दृष्टिकोण :-किसी भी लशय को प्राप्त करने के लिये सकारात्मक दृश्टिकोण आवश्यक होता है।
  • चिंतामुक्त वातावरण :- चिंता किसी भी समस्या का बड़ा कारन है। यदि आप कोई बड़ी उपलब्धि चाहते हैं तो चिंतामुक्त होकर अपने कार्य को लगातार करते रहें। 
  • मानसिक स्थिरता :- जिस व्यक्ति का उद्देश्य स्थिर होता है, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। 

         
              यदि अपनी शक्ति को आप एक स्थान पर स्थिर नहीं रख सकते तो आप कभी भी कोई महान कार्य नहीं कर सकते हैं और अपनी इस शक्ति को एकत्रित करने अर्थात एकाग्रता के लिए चाहिए दृढ संकल्प ,धैर्य , लक्ष्य निर्धारण और लगन। अगर आप सच में कोई बड़ी सफलता चाहते है तो इस शक्ति को पहचानिए और एकाग्र मन से हर कार्य को कीजिये। सफलता आपको अवश्य प्राप्त होगी।
                           
                                   -: धन्यवाद :-   

3/12/16

रबिन्द्र नाथ टैगोर

                              रबीन्द्रनाथ टैगोर

            रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 को कोलकता में हुआ था। उनके पिताजी का नाम देवेन्द्र नाथ टैगोर तथा उनके माताजी का नाम शारदादेवी था। बचपन में टैगोर जी को उनके परिवार वाले रवि नाम से बुलाते थे। 
            रबीन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति से बहुत प्यार करते थे। वे जब भी नीला आकाश, गुनगुनाते हुए पक्षियों, जंगलों की। हरियाली तथा अन्य कई प्रकार के प्राकृतिक वस्तुओं को देखते थे तो वे बहुत अचंभित  भाव से सम्मोहित हो जाते थे। उनको यह पृथ्वी बहुत सूंदर तथा आकर्षक दीखता था। वे बहुत ही कल्पनाशील थे और उन्होंने मात्र 8 वर्ष के उम्र में ही कविता लिखना आरम्भ कर दिआ था। तब उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह लड़का आगे चलकर एक महान लेखक, कलाकार, और महान विचारक बनेगा।
           उन्होंने 1868 में स्कूल में प्रवेश लिया। वे स्कूल के वातावरण को पसंद नहीं करते थे। स्कूल में वे अपने आपको एक कैदी की तरह महसूस करते थे, क्योंकि उनके क्लास की दीवारों पर घर की तरह खिड़की नहीं थे, जिनसे वे बाहर को देख सकें। पाठ उबाऊ लगता था। उनको कई बार स्कूल कार्य को नहीं करने के लिये दण्डित भी किया गया था। इस कारण उनको स्कूल से निकाल दिए जाता था तथा अन्य स्कूल में भेज दिया जाता था।फिर उनके बड़े भाई हेमेन्द्र ने  स्वयं उनकी पढाई की जिम्मेदारी ले ली।
           अब टैगोर के अंदर एक तेज बदलाव हुआ। वे अब कुश्ती, ड्राइंग, जिम्नास्टिक, संगीत, और विज्ञान में ज्यादा रूचि लेने लगे। उनके पास काव्य और संगीत की प्रतिभा जन्म से ही था। उनकी कविता लेखन की प्रतिभा को देख कर माता- पिता बहुत खुश थे। उनको 17 साल की उम्र में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। जब वे भारत लौटे तो पूरी तरह से एक लेखक और कलाकार के रूप में बदल चुके थे।
           1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी जी के साथ हुआ। कुछ समय बाद एक स्कूल की स्थापना की  जिसका नाम शांति निकेतन रखा। यह स्कूल प्रकृति के बिच में था। स्कूल के क्लास खुली वातावरण के बिच में पेड़ों के निचे लगाया जाता था। उनको स्कूल के विकाश में बहुत संघर्स का सामना करना पड़ा। परंतु वे संतुष्ट थे क्योंकि उनको वह पवित्र लगता था। उनका यह कार्य पूर्ण हुआ जब शांति निकेतन  अब बदलकर' 'विश्वभारती विश्वविद्यालय' हो गया तथा28 दिसंबर 1921 को राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
           रबीन्द्रनाथ टैगोर एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। वे अपने विचरों, आइडिया, दृष्टि, और स्वप्न को कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक, गीत तथा चित्र के माध्यम से सफलता पूर्वक दिखाते थे। हमारे देश के राष्ट्रगान जन गण मन की रचना उनके द्वारा ही किया गया है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उनसे बहुत प्रभावित हुए। वे टैगोर जी को 'गुरुदेव' बुलाते थे।टैगोर जी भी गांधी जी को बहुत आदर देते थे और उनको 'महात्मा'नाम दिया। टैगोर जी को 1913 में उनके महान काव्य रचना 'गीतांजलि'के लिए साहित्य का नोबल पुरुष्कार प्रदान किया गया। वे पहले एशियन व्यक्ति थे जिनको यह पुरुष्कार प्राप्त हुआ था।
             वे 7 अगस्त 1941 को हम सबको छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। उनको विश्व के सभी लोग हमेशा याद रखएंगे।            
           
              धन्यवाद। 

खंडगिरी और उदयगिरी गुफाएँ – इतिहास की पत्थरों पर उकेरी कहानी

     स्थान: भुवनेश्वर, ओडिशा      प्रसिद्धि: प्राचीनजैन गुफाएँ, कलात्मक शिल्पकला, ऐतिहासिक महत्व  परिचय भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ...