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दिसंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बुद्धिमान बीरबल the witty birbal

                   दोस्तों आज मैं आप लोगो को बीरबल की चतुराई से संबंधित एक कहानी बताता हूँ।              बीरबल अपनी बुद्धि और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। उसकी बुद्धि की खबरें आम हैं। अक्सर लोग उसकी बुदधि, कार्य और निर्णय के बारे में बात करते हैं। उसका नाम सम्मान और आदर के साथ याद किया जाता है। वह सम्राट अकबर के दरबार में नौ रत्नों में से एक था। राजा उसे हमेशा याद करता  जब भी वह मुश्किल में होता था।             वहाँ अकबर के खज़ाने में सोने, मोती और हीरे के कई अंगूठी थे। उनको एक अंगूठी सबसे ज्यादा पसंद था। इसके केंद्र में एक बड़ा हीरा और उसके चारों ओर मोतियों से जड़ा था। आठ सेवक उसके कीमती कपड़े और आभूषणो के रखवाली का काम देखते थे । वे वफादार सेवक थे। और वे राजा को दरबार के लिये तैयार भी करते थे। किसी को भी उस अंदरूनी कमरे में जाने की अनुमति नहीं होती थी। राजा को अपने सेवकों पर भरोसा था।             यह एक विशेष अवसर था।अदालत में बैठक  आयोजित किया गया था। अकबर इस अवसर पर अपनी वाही पसंदीदा अंगूठी को पहनना चाहता था। अकबर सेवकों में से एक से कहा, सबसे खूबसूरत अंगूठी ले आओ। सेवकों को पता था

Witty birbal चतुर बीरबल Story

           Birbal was famous for his wit and wisdom. Stories of his wit are common. Often people talk about his witty acts and judgements. His name is remembered with respect and regard. he was one of the nine gems in the court of Emperor akbar. the king always asked for him whenever he was in difficulty. There were many rigs of gold, pearl and diamond in the treasury of Akbar. He liked one ring the most. It was one with a latge diamond at the centre and pearls around it. Eight servants looked after his precious clothes and jewellery. They were considered loyal servants. They also helped the king to get ready for the court. Nobody else was permitted to enter he's inner apartment. The king had full faith in his servants. It was a special occasion. Ameeting was to be held in the court. Akbar wanted to wear he's favourite ring. Akber saed to one of the servants, Bring the most beautiful ring . The servants knew which ring had to be brought. Hi went

परमाणु बम और हाइड्रोजन बम में अंतर Diffrence between Atom bomb and hydrojan bomb

          दोस्तों आज मैं आप लोगों को बहुत ही विनाशकारी बमों परमाणु बम तथा हाइड्रोजन बम की सामान्य जाकारी  देने जा रहा हूँ। दोस्तों जैसा की आप जानते है की ये दोनों ही बम बहुत ही विनाशकरी होते है तथा दोनों के इस्तेमाल से पूरी मानव जाती का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है। इसीलिए इसके अप्रसार के लिए कई प्रयास हो रहे हैं तथा कई अंतराष्ट्रीय संधि किए गए हैं।            दोस्तों इन दोनों बमों के निर्माण का तरीका भी अलग अलग होता है चलिये इसी को समझते हैं।  1.परमाणु बम :- इसे Nuclear Bomb या Atom bombभी कहते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियापर आधारित होता है। इसमें U-235 ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस पर न्यूट्रान की बमबारी से यह क्रिया शुरू हो जाती है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा U-235 युक्त परमाणु बम (लिटिल बॉय) तथा नागाशाकी पर pu-239 से युक्त परमाणु बम (फैटमैन) गिराया था जिनमें लाखों लोगों की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था। 2. हाइड्रोजन बम - यह नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पर आधारित होता है। इसके लि

महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह का आखरी पत्र

           दोस्तों आज मैं भगत सिंह के उस आखरी पत्र के बारे में जानकारी दे रहा हूँ जिसे उन्होंने फंसी पर चढ़ने से ठीक एक दिन पहले लिखा था। साथियों मेरा आपसे विनम्र गुजारिश है अगर आपके दिल में हमारे शहीदों के प्रति जरा भी सम्मान है तो इसे जरूर पढें। साथियों भगत सिंह ने  जब यह पत्र लिखा था तो उनके मन में मौत का तनिक भी भय नही था और न ही फाँसी दिए जाने का पछतावा। उनके पत्र का जिक्र करने से पहले मैं आपको भगत सिंह के बारे में संक्षेप में कुछ जानकारी देना चाहता हूँ।             दोस्तों हमारे देश के महान पुरुष क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर सन् 1907 को पश्चिम पंजाब के लायलपुर जिले के बंग गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार किशनसिंह था। बचपन से ही  क्रांतिकारी विचारों वाले भगतसिंह ने अपने जीवन में ब्रिटिश उपनिवेशवादी शक्तियों को तथा उसके साम्राज्य को उखाड़ फेकने का संकल्प ले लिया था। अपने क्रन्तिकारी साथियों -चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद 'बिस्मिल', अश्फाक उल्ला खाँ के साथ मिलकर उन्होंने एक  क्रांतिकारी संगठन 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' बनाया। साइमन कमीश

एकाग्रता:सफलता सफलता का मूलमंत्र

              सफलता के लिए एकाग्रता अनिवार्य  दोस्तों आज मै एक कहानी के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास का रहा हूँ।वैसे यह कहानी तो बहुत पुरानी है, लेकिन इसका जो सार है वह आज भी प्रासंगिक है।                 यह कहानी भारतीय पौराणिक कथा महाभारत के एक प्रसंग पर आधारीत है। गुरु द्रोणाचार्य अपने आश्रम में सभी शिष्यों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दे रहे थे। गुरु द्रोणाचार्य ने  एक बार अपने सभी शिष्यों से उनकी परीक्षा लेना चाहा। उन्होंने अपने सभी शिष्यों से पेड़ पर बैठी चिड़िया के आँख पर निशाना लगाने को कहा। तीर छोडने से पहले अपने सभी शिष्यों से बारी-बारी से एक प्रश्न किया,और पूछा की बतओ तुमको पेड़ पर क्या क्या  दीख रहा है ?तब किसी शिष्य ने कहा पेड़ की डाली ,पत्ति आदि। किसी ने कहा पेड़ पर बैठी चिड़िया। एक ने कहा गुरुजी  मुझे आप, सभी शिष्य, चिड़िया सब दिख रहा है । लगभग सभी शिष्यों का यही जवाब था। किन्तु जब अर्जुन की बारी आई तो गुरु ने अर्जुन से भी वही सवाल दोहराया तो उसने कहा- गुरुदेव मुझे सिर्फ चिड़िया की आँख ही दीख रही है। अर्जुन की एकाग्रता को देख के गुरुजी समझ गए की सभी शिष्यों में केवल अर्ज

रबिन्द्र नाथ टैगोर

                              रबीन्द्रनाथ टैगोर             रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 को कोलकता में हुआ था। उनके पिताजी का नाम देवेन्द्र नाथ टैगोर तथा उनके माताजी का नाम शारदादेवी था। बचपन में टैगोर जी को उनके परिवार वाले रवि नाम से बुलाते थे।              रबीन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति से बहुत प्यार करते थे। वे जब भी नीला आकाश, गुनगुनाते हुए पक्षियों, जंगलों की। हरियाली तथा अन्य कई प्रकार के प्राकृतिक वस्तुओं को देखते थे तो वे बहुत अचंभित  भाव से सम्मोहित हो जाते थे। उनको यह पृथ्वी बहुत सूंदर तथा आकर्षक दीखता था। वे बहुत ही कल्पनाशील थे और उन्होंने मात्र 8 वर्ष के उम्र में ही कविता लिखना आरम्भ कर दिआ था। तब उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह लड़का आगे चलकर एक महान लेखक, कलाकार, और महान विचारक बनेगा।            उन्होंने 1868 में स्कूल में प्रवेश लिया। वे स्कूल के वातावरण को पसंद नहीं करते थे। स्कूल में वे अपने आपको एक कैदी की तरह महसूस करते थे, क्योंकि उनके क्लास की दीवारों पर घर की तरह खिड़की नहीं थे, जिनसे वे बाहर को देख सकें। पाठ उबाऊ लगता था। उनको कई बार स्कूल कार्य