14/11/17

भारत






भारत का क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किलोमीटर है.  भारत की स्थिति 80 4’ से 3706’ मिनट उत्तरी अक्षांश में स्थित है.
भारत की देशांतर स्थिति 6807’  से 970 25’ पूर्वी देशांतर है.
भारत का विस्तार उत्तर से लेकर दक्षिण 3214 किलोमीटर है,
भारत का विस्तार पूर्व से पश्चिम की ओर 2933 किलोमीटर है भारतीय सीमा 15200 किलोमीटर तक है जबकि इसकी समुद्र तट की लंबाई 7516.6 किलोमीटर है. इसके कुछ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों के बारे में हम जानते हैं.
राष्ट्रीय ध्वज


संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को अपनाया 26 जनवरी 2002 से भारतीय ध्वज संहिता-2002 प्रभावी है राज-चिन्ह भारत

सरकार ने 26 जनवरी 1950 को अपनाया यह अशोक के सारनाथ स्तंभ की अनुकृति है मूल स्तंभ में शीर्ष पर 4 दिन सिर्फ पर जाती है भारत के राज्य चिन्ह का उपयोग भारत के राजकीय अनुचित उपयोग अधिनियम 2005 के तहत नियंत्रित होता है.
राष्ट्रगान जन गण मन 24 जनवरी 1950 को अपनाया गया राष्ट्रीय पंचांग कैलेंडर के साथ-साथ शक संवत पर आधारित है इसे 22 मार्च 1957 को अपनाया गया भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हो गया और इसके कुछ अंशों को जिस दिन लागू किया गया है भारत का संविधान पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को संपूर्ण भारतवर्ष पर लागू किया गया तथा इस दिन से भारत का संविधान भारत पर प्रभावी हुआ.

21/9/17

Baba Ram Rahim

jke jghe ds dkjukes rks lqudj vPNs vPNs yksxks ds gks’k mM+ x,sA [kkldj tc mudks ltk gqbZ rks muds tks vuw;kbZ;ksa us ml ij tks viuh HkfDr dks mtkxj fd;k oks rks vkSj Hkh gSjku djus okyh FkhA fd vkf[kj dksbZ bl rjg ds vkneh dks dSls viuk vkn’kZ eku ldrk gS oks Hkh bl gn rd dh muds fy, dqN Hkh dj ldrk gSA bl rjg dh va/kHkfDr vkt ;g lkspus ds fy, etcwj djrh gS fd vkt ds bl vk/kqfud Hkkjr essa Hkh bl rjg dh vkLFkk ds f’kdkj gS tks mudks viuk Hkxoku ekurh gsSA tks pkgs dqN Hkh djs ysfdu yksx ;s ekuus ds fy, rS;kj ugh gS fd oks vkneh xyr gsSA eSa ml yMdh ds [kr ds ckjs ess lksprk gqW ftlesa mlus ckck ds ckjs esa vius ekrk firk dks Hkh crk;k Fkk ysfdu mUgksus vius csVh ls T;knk ml ckck ds ij fo’okl fn[kk;k vkSj dgk fd rqedks dksbZ xyrQzseh gqb gksxh ckck rks Hkxoku gSa oks vkf[kj ,slk dSls dj ldrs gSaA rqedks mUgs xyr ugh dguk pkfg,A
       tc ml yMdh dh ckr tc muds viuks us ugha lquh rks mlus bl ckck ds d`R;ksa dks nqfu;k ds lkeus ykus dk nqljk jkLrk viuk;kA mlus ,d xqeuke [kr rkRdkfyu iz/kkuea=h vVy fcgkjh oktis;h dks fy[kk ftlds ckn ljdkj gjdr essa vkbZA rc Hkh bl ekeys dsk nckus dk iz;kl gksrk jgk ysfdu bl ekeys us rqy rc idM+k tc gfj;k.kk ds ,d nSfud v[kckj us Msjk lPpk lkSnk vkJe ds vUnj gks jgs vuSfrd dkeksa ds ckjs esa Nkik rc lkjk iz’kklu gjdr esa vk;kA vkSj bl vkJe ij dk;Zokgh izkjEHk gqbZA rFkk bldsz izeq[k jke jghe dks fxjQrkj fd;k x;kA
       ysfdu ;s lkjh ckrsa esjs fy, dksb vk’p;Z dk fo"k; ughs gSA D;ksafd ckck jghe ls igys dbZ ,sls ckck ds dkjukes nqfu;k ds lkeus vk pqds gS oks ,d ckr dgk tkrk gS fd vkneh rc rd ‘'kjhQ gS tc rd mldh pksjh idM+h uk tk,A ysfdu rc D;k tc mldh pksjh Hkh idM+ es vktk, rc Hkh ge mls Hkxoku dh rjg iqtrs jgsaA bu yksxks ds rjg tks ckck gksrs gSa oks ges’kk vke vkSj Hkksys Hkkys yksxks ds vkLFkk ds lkFk f[kyokM+ djrs jgrs gSaA dksbZ O;kfDr FkksMk lk dksbZ peRdkj D;k fn[kk ns ge mudks Hkxoku dh rjg iqtus yxrs gSA vkSj gekjh ;gh va/kHkfDr bu yksxksa dks vuSfrd dke djus ds fy, izksRlkfgr Hkh djrh gSA ges fdlh Hkh O;fDr ;k laLFkk ij ;qW gh vka[k can djds fo’kokl ughs djuk pkfg, ughs rks bldk ifj.kke cgqr gh /kkrd gks ldrk gSA



       lekt ds mu xq.kh tuks ls vkSj ,sls yksxks ds vu;k;h;ksa ls ;s tkuuk pkgrk gq tks ckck ds ltk gksus ds ckc fgalk QSyk jgs gS ljdkjh lEiRrh dks uqdlku igqpk jgs gSa vxj ;s lc vuSfrd dk;Z vxj muds viuks ds lkFk gksrh rc Hkh D;k oks ,slh gh ckck ds leFkZu es izfrfdz;k nsrs\ vktdy ,d pyu gks x;k gSA

15/7/17

Save water.

ueLdkj nksLrksa
 vkt eSa vki yksxksa dks vius nSfud thou esa ikuh ds egRro ds ckjs esa tkudkjh ns jgk gWWwA tSlk fd vki lHkh tkurs gS fd bl nqfu;k esa lHkh thoksa ds fy, ikuh cgqr vko’;d gSA chuk ikuh ds dksbZ Hkh tho thfor ugha jg ldrkA
ysfdu D;k vkidks bl /kjrh ij ikuh dh miyC/krk ds ckjs esa irk gSAnksLrksa vc vki lksap jgsa gksaxs fd bles ubZ ckr D;k gsS ge lHkh tkurs gSa fd iqjk i`Foh ij rks egklkxjksa ds :i esa ty gh ty gSA th gWk nksLrksa ge lHkh tkurs gSa fd bl i`Foh ij rhu pkSFkkbZ Hkkx ij ikuh gSA ysfdu D;k vki tkurs gSa fd blesa ls gekjs mi;ksx ds yk;d fdruk ikuh gSA nksLrksa lkxj ds ikuh esa foHkhUu izdkj ds yo.k ?kqys gksrs gS ftl dkj.k ls ;g [kkjk gksrk gSA ge leqnz ds ikuh dk mi;ksx ihus]ugkus] diMk /kksus] flapkbZ vknh ds fy, bldk mi;ksx ugha dj ldrsA /kjrh ij thruk Hkh ikuh miyC/k gS mlesa ls 97 izfr’kr lkxjksa esa gS] 2 izfr’kr cQZ ds :i esa rFkk 1 izfr’kr gh ty gekjs mi;ksx ds yk;d gSSA tks fd ufn;ksa] rkykcksa] >hyksa rFkk Hkwfexr ty ds :i esa miyC/k gS] thl ij ge fuHkZj gSaA
          vc ge lkxj ds ikuh dk mi;ksx dj ugha ldrs] cQZ tks fd i`Foh ds nksuks /kzqoksa ij rFkk ioZrksa ds pksfV;kas ij gS thldks mi;ksx yk;d cukus yk;d lalk/ku miyC/k ugha gS rks vc cps 1 izfr’kr ikuh ij gh xqtkjk djuk gsS rks D;ksa uk bldk mi;ksx cgqr lksap le>dj fd;k tk; rFkk bldk laj{k.k ij fo’ks’k /;ku nsus dh vko’;drk gSA

27/5/17

The fish

The Fish

A fish has an air bladder in its stomach. It is full of air and a fish can swim or float with its help. A fish swims as fast as a good racer. Its speed is about five hundred meters in a minute.
                A fish takes oxygen from water. One can see some beautiful orange, black and golden fish in an aquarium. Goldfish can be seen in the pond. They shine a bright as gold.
                A fish takes water into its mouth and throws it out again. It takes oxygen from the water before throwing it out.
                If we with a goldfish closely, we will see that its body is like a boat. It swims with the help of its fins.
                A female fish lays a large number of eggs in water. A fish sleeps too, but it does not close its eyes. This is because it has no eyelids. A fish can see with its eyes. No one can see its ears because the ears are hidden. A fish can smell also. A fish does not feel cold in the water because the temperature of its body changes with the temperature of the water
                Children if you want to enjoy seeing fish, you can deep an aquarium at home. An aquarium is a glass tank. It should not be kept in the sun. Water weeds and water snails are collected along with sand and pebbles. These things are put into the aquarium. It is great fun to watch a goldfish and other fish as pets.

29/3/17

आत्मसंतुष्टि प्रगति में बाधक



          आज मैं एक कहानी के माध्यम से आप लोगों के साथ एक बात कहना चाहता हूँ। कि कैसे हम काम चलाऊ जीवन यापन करने की मानसिकता एक व्यक्ति को अपने जीवन में आगे बढ़ने से रोकता है।
          पुराने समय की बात है उन दिनों शिक्षा ग्रहण करने के लिए लोगो को अपने गुरु के आश्रम में ही रहकर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती थी। जहाँ शिष्य को तमाम जानकारी चाहे वो व्यवहारिक हो या सैधन्तिक सभी वहीं से सिखनी होती थी।
            गुरु अपने शिष्य के साथ प्रवचन देने के लिये नगर भ्रमण के लिए निकल गए। काफी दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। एक दिन की बात है भ्रमण कारते-करते शाम हो गई। तब गुरु ने अपने शिष्य से कहा कुछ समय बाद रात होने वाली है, और आगे का रास्ता जंगल से होकर गुजरता है। अतः हमारा रात में सफर करना ठीक नहीं होगा। आज रात हम यहीं किसी के घर में बिताएंगे।
            कुछ ही दुरी पर एक टुटा-फूटा झोपडी नुमा घर नजर आता है। वे वहीँ रात बिताने का निर्णय करते है और घर में प्रवेश करते है। घर का मालिक भला व्यक्ति था उसने अपने सामर्थ्य के अनुसार उनका आदर सत्कार करता है।
             कुछ समय बाद गुरु ने उस व्यक्ति से कहा जब हम आपके यहाँ आ रहे थे पास में ही बहुत अच्छी उपजाऊ भूमि दिखी जिसमें वर्तमान में कुछ भी फसल नही लगा है, वह भूमि किसकी है? इसके जवाब में उस व्यक्ति ने कहा महोदय वे सभी भूमि मेरी ही है। तो गुरु ने प्रश्न किया कि आप कि आय का साधन क्या है? तो उस व्यक्ति ने उत्तर दिया की मेरे पास एक भैस है जो अच्छी-खासी दूध देती है। मैं उसी दूध को बाजार में बेचता हु जिससे कुछ पैसे मिल जाते है। तथा कुछ मेरे लिए भी बच जाता है, जिसे मै भोजन के रूप में ग्रहण करता हूँ। अब आप ही बताइए भला मुझे कृषि करने की क्या आवश्यकता है।
             जब गुरु- शिष्य सोने जा रहे थे तभी गुरु ने शिष्य से कहा आज हमें भोर में जल्दी उठना है, साथ ही इस व्यक्ति का भैंस को चोरी करके साथ ले जाएंगे। शुरू में तो तो शिष्य को अपने गुरु की बात अजीब लगा। किन्तु उसका विरोध नहीं कर पाया। सुबह दोनों भोर में ही उठकर चल दिए तथा उस व्यक्ति के भैंस को भी चोरी कर साथ ले गए और पहाड़ी से नीचे गिराकर मार दिया।
             कुछ दिनों के बाद शिष्य की शिक्षा पूरी हो गई। वह अपने काम-धंधे में अच्छी तरक्की करता है,और एक बड़ा आदमी बन जाता है। कुछ वर्षों के बाद उसी रास्ते से गुजर रहा था, तभी उसे उस आदमी का ध्यान आता है जिसके यहां उन्होंने रात गुजारी थी। उसे उस आदमी पर बहुत दया आ रहा था उसने सोचा की चलो आज उस व्यक्ति की कुछ आर्थिक सहायता किया जाए, हम लोगो ने उसकी आय के साधन उस भैंस को मार दिया था। यह सोचते हुए उस व्यक्ति से मिलने के लिए उसके घर की तरफ जाने लगा। जाते हुए उसने देखा की जहाँ पर बेकार भूमि पड़ी थी वहां हरे भरे फसल लहरा रहे थे। उस जमीन पर कई फलदार वृक्ष लगे थे।
               जब वहां पहुचा तो उस झोपड़ी के स्थान पर एक आलिशान घर को पाया। उसने सोचा वह व्यक्ति शायद अपना घर-जमीन बेच कर कहीं अन्य जगह चला गया होगा। उसने यह सोचते हुए दरवाजा खटखटाया जब घर मालिक ने दरवाजा खोला तो वह आश्चर्य से उस व्यक्ति को देखने लगा। बातो ही बातो में जब उसने पूछा की क्या आप मुझे पहचानते हैं कुछ वर्षो पूर्व मैं अपने गुरु जी के साथ यहां रात बिताने के लिए रुका था। तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया की मैं आप लोगो को कैसे भूल सकता हु। किन्तु आप लोगो से शिकायत है की आप लोग बिना बताए ही यहां से चले गए थे। और हाँ उसी दिन एक और दुखद घटना हुई थी पता नहीं कैसे मेरी भैंस पहाड़ी पर चली गई और वहां से गिर कर मर गई।
                 उस शिष्य ने उससे पूछा फिर ये चमत्कार कैसे हुआ आप इतने धनवान कैसे हो गए। तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया की जब मेरी भैंस मर गई तो मेरे सामने जीविका चलाने का संकट पैदा हो गया था। तब मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करु तभी मन में ख्याल आया की चलो पेट भरने के लिए खाली जमीन पर खेती किया जाए और थोड़े से जमीं पर खेती कार्य शुरू किया। जब अच्छी पैदावार मिलने लगी तो सोचा क्यों न इसे अच्छी आमदनी का जरिया बनाकर किया जाए। यही सोचकर बागवानी, फल सब्जी की खेती भी शुरू कर दिया जिससे अच्छी आमदनी होने लगी, जिसका नतीजा आप के सामने है। यह सुनकर वह आदमी भहुत खुश हुआ और आज उसे समझ में आ गया था की उसके गुरूजी ने क्यों उस दिन उस भैंस को मार दिया था।
                 
                 इस कहानी से यह सिख मिलती है की हम जब अपने काम से संतुष्ट हो जाएंगे कुछ नया नही सोंचेंगे तब तक हम जहां हैं वही रहेंगे।     

28/3/17

मूर्ख ब्राह्मण

 तीन चोरों ने मिलकर कैसे एक ब्राह्मण को बेवकूफ बनाया ....


         गंगा के किनारे एक गांव में, एक ब्राह्मण रहता था। वह एक धार्मिक और ईश्वर से भयभीत व्यक्ति था। वह अन्य लोगों के, घर में पूजा-पाठ कर के अपना जीवन यापन कर रहा था। एक दिन ब्राह्मण को पड़ोसी गांव में एक उत्सव में पूजा के लिए बुलाया गया।उसके इन सेवाओं के बदले, उन्हें एक बकरा उपहार के रूप में मिला।
ब्राह्मण ने आभार व्यक्त किया और प्रसन्न हुआ। उपहार में मिले बकरे को कंधे में उठाकर घर की और चंलने लगा। वह मन में विचार करने लगा।  "यह एक उदार परिवार था,जो मुझे एक बकरा मिला है।" मेरी पत्नी और बच्चे बहुत प्रसन्न होंगे। जैसे ही वह अपने रास्ते से गाँव तरफ चंलने लगा। उसने ध्यान नहीं दिया कि उसके ऊपर नजर रखा जा रहा है। तीन चोरों द्वारा उसका पीछा किया जा रहा था। "हमें उस मोटे बकरे को पाना चाहिए", पहले चोर ने कहा।   "यह हमारे लिए एक बहुत अच्छा भोजन होगा",  दूसरा चोर ने कहा। "हमें पहले एक योजना के बारे में सोचने की जरूरत है।" तीसरे चोर ने कहा। तीनो ने ब्राह्मण को मूर्ख बनाने का फैसला किया।
तीनों चोरों में से पहला चोर ब्राह्मण के पास गया और कहा, "प्रिय ब्राह्मण, आप एक पवित्र व्यक्ति हैं, आप अपने कंधों पर इस 'गंदे कुत्ते' को क्यों ले जा रहे हैं?" "एक गंदे कुत्ता।" क्या आप नहीं देख सकते हैं कि यह एक बकरा है क्या आप अंधे हैं?" ब्राह्मण गुस्से में कहा। पहला चोर हँसा और चला गया।
ब्राह्मण ने बकरे की ओर देखा, और कहा "यह एक बकरा ही है"। और इसलिए उसने घर के लिये अपनी यात्रा फिर से शुरू किया। रास्ते में कुछ दूर जाने के बाद,आगे ब्राह्मण के पास दूसरा चोर आया। दूसरे चोर ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए ब्राह्मण से कहा, "आप एक धार्मिक आदमी हैं, आप अपने कंधे पर एक मरे हुए बछड़े को क्यों ले जा रहे हैं"? ब्राह्मण क्रोधित हुआ और कहा "यह जीवित बकरा है ना कि, मृत बछड़ा।"
ब्राह्मण मुश्किल से कुछ दूर चला था, तब तीसरा चोर ब्राह्मण की ओर हाथ लहराते हुए आया "उस गधे को एक बार जमीन पर रख दो।  यदि लोग आप को अपने कंधो पर एक 'गधे' को लादकर ले जाते हुए देखेंगे तो लोग आप के बारे में क्या सोचेंगे?" अब तक ब्राह्मण बहुत उलझन में पड़ चूका था। और सोचने लगा तीन अलग-अलग लोगों ने उसे बताया था कि वह अलग-अलग किसी जानवर को ले रहा है, ना कि एक बकरा को। उसने सोचा कि कुछ चीज गलत हो रहा है। "यह कोई बकरा नहीं है, यह कोई एक भयानक राक्षस होगा जो पल-पल अपना रूप बदल रहा है।" और यह सोचते हुए ब्राह्मण ने बकरे को नीचे फेंक दिया और जितने तेजी से अपने घर की ओर भाग सकता था,वह भाग गया।
तीनों चोर बहुत जोर-जोर से हंसने लगे। और वे अपनी योजना में सफल हुए।  उन्होंने बकरे को उठाया और लेकर चल दिए।  ब्राह्मण ने उनपर विश्वास करके कितनी मूर्खता कर दी थी।

27/3/17

जब एक 'हंस' ने मामले को सुलझाया।


                         बड़ा कौन है- मारने वाला या बचने वाला? इसका निर्णय हंस ने किया। 


                         शुधोधना एक महान राजा था।  एक दिन वे अपने सिंहासन पर बैठे थे। उनके दरबारमें उनके मंत्रि भी मौजूद थे। वे राज्य के मामलों पर चर्चा कर रहे थे। तभी उनके द्वारपाल दरबार में प्रवेश किया। उन्होंने राजा को देव दत्त के आगमन के बारे में राजा को सूचित किया। राजा ने उनको दरबार में आने की अनुमति दे दी और देव दत्त ने दरबार में प्रवेश किया।

देवदत्त  ने राजकुमार सिद्धार्थ के खिलाफ शिकायत की। उन्होंने राजा से कहा कि सिद्धार्थ ने उसका हंस ले लिया है।  उन्होंने दावा किया कि हंस उनका था क्योंकि उसने इसे गोली मारी थी। उसने न्याय के लिए राजा से प्रार्थना की

राजा ने सिद्धार्थ को दरबार में बुलाया सिद्धार्थ ने हंस के साथ दरबार  में प्रवेश किया सिद्धार्थ ने राजा को बताया कि उसने इस हंस को बचाया है इस लिये यह मेरा हुआ।

यह एक अजीब मामला था। राजा इसे तय करने में असमर्थ था वह उलझन में था राजा ने अपने मुख्यमंत्री को इस मामले की सुनवाई करने और मामला हल करने का आदेश दिया।                                                                                                                                                                          
मुख्यमंत्री ने सिद्धार्थ को स्टूल पर हंस को रखने के लिये कहा। देवदत्त ने उस हंस को बुलाया।  हंस डर से काँपने लगा और भय से रोया।

अब राजकुमार सिद्धार्थ की बारी थी।  उसने उस हंस को बुलाया तब हंस उड़कर सिद्धार्थ के हाथों में जाकर बैठ गया।  मामला सिद्धार्थ के पक्ष में तय किया गया। और हंस उसे दे दिया गया।

                             इसी लिए कहा गया है कि हमेशा मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है। 

23/3/17

गोपाल भांड और महाज्ञानी

लगभग 200 साल पहले राजा कृष्ण चंद्र बंगाल के एक हिस्से पर शासन करते थे। उनके अदालत में गोपाल भाण्ड नाम का मशखरा था। हालांकि गोपाल भांड  ने किताबों का अध्ययन नहीं किया था, किन्तु वह बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था।
एक बार, एक बहुत ही दक्ष आदमी, महाग्यानी पंडित अदालत में आया। उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं में स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से बात की। उन्हें दर्शन और धर्म का अच्छा ज्ञान था।
उसने सभी प्रश्नों का बहुत बुद्धिमानी से उत्तर दिया लोग उससे बात करने काबिलियत से आश्चर्यचकित थे।  लेकिन कोई भी उनकी मातृभाषा की पहचान नहीं कर सका।
जब भी उन्होंने उससे पूछा जाता, वह अहंकार से मुस्कुराता और कहता, "वास्तव में जो बुद्धिमान व्यक्ति होगा वह मेरी मातृभाषा को आसानी से जान जायगा।"
राजा कृष्ण चंद्र बहुत परेशान था।  इसलिए उन्होंने इसके के लिए एक इनाम की घोषणा की, जो पंडित की मातृभाषा को बता सकता था।
सभी विद्वानों ने ध्यान से महाज्ञानी की बात सुनी। लेकिन कोई भी उसकी मातृभाषा की पहचान नहीं कर सका "आप पर शर्म आनी चाहिए", राजा ने गुस्से में कहा।  सभी विद्वान चुप थे। गोपाल भांड झटके से खड़ा हो गया। उन्होंने कहा, "महाराज, मुझे मौका दो।" "आप कैसे बता सकते हैं?", राजा ने पूछा "महाराज!" मैं बात नहीं करूंगा वह आपको अपने आप ही बताएंगे, "गोपाल भांड ने जवाब दिया।
अगली सुबह राजा अपने बगीचे में टहल रहा था। गोपाल भांड जल्दी से उनके पास भागा और कहा, "मैंने महाज्ञानि पंडित को बताया है कि आप उसे गुलाब की हार के साथ सम्मान करने जा रहे हैं।" "क्या", राजा ने आश्चर्य से कहा।
कुछ समय बाद में राजा ने महाज्ञानी पंडित को आशा के अनुरूप अपनी ओर आते देखा।  वह रेशमी कपड़ों में था।
गोपाल भांड खुद पेड़ो के पीछे छिप गया। महाज्ञानी जैसे ही पेड़ के पास आए, उन्होंने अपना पैर बाहर कर दिया और पंडित को गिरा दिया। महाज्ञानी पंडित ताजा किचड़ जमीन पर गिर गया। वह उठ कर बैठ गया और अपनी मातृभाषा में गोपाल भांड पर चिल्लाने लगा। गोपाल भांड ने कहा,!"महाराज" अब आप जानते हैं, पंडित की" मातृभाषा क्या है! "
महागनी पंडित उठकर गोपाल भांड से कहा, "बुद्धिमान व्यक्ति, आपने मुझे समझदारी से फँस दिया है" और वह चले गए।

चंद्रमा पर खरगोश -कहानी

इस कहानी में एक खरगोश के त्याग के बारे में बताया गया है, जो एक भूखे सन्यासी का भूख मिटाने के लिए स्वयं
उसका भोजन बनने के लिए तैयार हो जाता है।

एक खरगोश एक जंगल में रहता था, उसके दो दोस्त थे- एक बंदर और एक उल्लू। वे तीनो बहुत समय से एक साथ रह रहे थे।
एक दिन, एक साधु वन में आया वह बहुत थका हुआ था, और भूखा भी था।
उल्लू मछली को पकड़े हुए था, साधु उसके पास गया "मुझे भूख लगी है," उन्होंने कहा।
मेरे पास कुछ मछलियां हैं,उल्लू ने कहा, "कृपया उन्हें ले लो।"
 "लेकिन मैं मछली नहीं खाता हूं," साधु ने कहा।
"क्या कुछ और है?"
 "माफ करना," उल्लू ने कहा "
"मेरे पास और कुछ नहीं है।"
बंदर सूखे फल खा रहा था
साधु उसके पास गया।
साधु ने कहा, "मैं बहुत भूखा हूं"
"क्या आप मुझे कुछ खाना दे सकते हैं?"
"मेरे पास कुछ सूखे फल हैं," बंदर ने कहा।
"ओह! लेकिन मैं उनमें से बहुत चाहता हूं," साधु ने कहा,
"मैं बहुत भूखा हूँ।"
बंदर ने कहा, "मुझे खेद है, मेरे पास केवल कुछ ही हैं।"
"'मैं फिर खरगोश से पूछता हूं,' ऐसा साधु ने कहा।
खरगोश हरे घास खा रहा था
साधु उसके पास गया।
"मुझे बहुत भूख लगी है, साधु ने कहा।"
"कृपया, क्या आप मुझे कुछ खाना दे सकते हैं?"
खरगोश ने कहा, "मेरे पास बहुत घास है"।
"लेकिन मैं घास नहीं खाता !" एक मुस्कुराहट के साथ साधु ने कहा
"क्या आपके पास कुछ और है?"
"नहीं, मुझे खेद है," खरगोश ने कहा
साधु ने कहा, "मैं बहुत भूखा हूं, और मैं थका हुआ हूं"।
"अब मैं क्या करूँ?"
खरगोश यहाँ एक मिनट के लिए सोचा और कहा "रुकिए,"। "कृपया दूर मत जाओ।"
खरगोश कुछ लकड़ी लाया।उसने एक साथ पत्थर मारकर आग जला दी। "आप मुझे खा सकते हैं," खरगोश ने कहा।
और आग में कूद गया। लेकिन आग उसे नहीं जलाई! वह बाहर देखा, लेकिन साधु वहाँ नहीं था एक देवदूत उसके सामने खड़ा था
उसने अपनी बाहों में खरगोश को लिया, और उड़ गए उसने उसे चंद्रमा पर रखा, चाँद पर देखो आप अभी भी इस पर खरगोश को देख सकते हैं।

22/3/17

'मसाई' का घर

             मसाई एक जनजाति है, जो कि पूर्वी अफ्रीका में निवास करती है। मसाई अपने मवेशी और उनके खेतों के पास चरागाह मैदानों पर छोटे परंपरागत घरों में रहना पसंद करते हैं। मसाई महिलाएं अपने घरों का निर्माण करती हैं।
            सबसे पहले, वे आयताकार, जमीन घर के आकार का खाका खीचते हैं। वे शाखाएं और टहनियों को जोड़कर बुनाई करके एक फ्रेम बनाते हैं फिर, वे इमारत को  सूखी रखने के लिए बाहर घास और गोबर का मोटी परत लगा देते हैं। यह करना आवश्यक है, क्योंकि बहार का मौसम नम होता है।
             मसाई लोगों के घर के अंदर सिर्फ एक कमरा होता है। लगभग छह लोग एक साथ एक बड़ी शाखाओं से बनी एक बड़े बिस्तर में सोते हैं। घर के अंदरूनी कोने में मां और बच्चे सोते हैं।
               घर के अन्दर सेंटर में एक आग जलाने का स्थान होता हैं। यहीं पर आग जलाइ जाती है।  यह खाना पकाने, गर्मी और प्रकाश के लिए भी प्रयोग किया जाता है। मसाई के घर में कोई खिड़कि नहीं होती हैं। केवल एक छोटा रोशनदान प्रकाश अंदर आने और धुआं बाहर करने के लिए रखा जाता है।
               पशु मसाई परिवार के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बछड़ों और बकरियां को घर के अंदर एक विशेष स्थान में रखा जाता हैं। वे लंबे बर्तन में दूध पीते हैं,जिसको कुलाबा कहा जाता है। जिसको खोखला हुआ लौंडे से बनाया जाता है।

18/3/17

"यह भी गुजर जाएगा"

             पुराने दिनों में एक राजा रहता था उसका नाम सुलैमान था।  वह स्वभाव से नीच था।  एक दिन वह एक क्रोधी मनोदशा में था, और अपने मंत्री को एक सबक सिखाने का सोचा।
राजा ने अपने मंत्री को एक ऐसा काम सौंपा, जो असंभव था। उन्होंने उसे असाधारण सुविधाओं के साथ एक जादू की अंगूठी खोजने का आदेश दिया। उन्होंने अपने मंत्री से कहा, "यदि कोई खुश है और अंगूठी पहन रखा है, तो वह दुखी होना चाहिए। और इसके विपरीत यदि कोई नाखुश है, लेकिन अंगूठी पहना, तो वह खुश होना चाहिए ऐसी अंगूठी खोज कर लाओ।"
मंत्री ने सोचा कि राजा उसके साथ गुस्से में है, यही वजह है कि वह उसे एक असंभव काम दे रहे हैं।
राजा ने आगे कहा, "मैंने आपकी खोज के लिए छह महीने का समय तय किया है। अगर आप आवंटित अवधि में कार्य नहीं कर पाए, तो परिणाम आपके भाग पर दुखी होगा।"
मंत्री जानते थे कि विश्व में  ऐसी अंगूठी मौजूद नहीं थी वह ह्रदय में गहराई से उसने एक चमत्कार के लिए कड़ी मेहनत की। वह इस तरह की अंगूठी के लिए पूरे देश में चले गए। समय सीमा समाप्त होने से पहले, उन्होंने देश के सबसे गरीब स्थानों में से एक के पास जाने का फैसला किया।
वहां मंत्री ने एक व्यापारी को देखा जो अपने पुराने सामानो को कालीन पर फैला रहा था। उसने अपने साथ एक दांव खेलने का फैसला किया। इसलिए उसने व्यापारी से कहा, "क्या आपके पास एक जादू की अंगूठी है जो एक खुश आदमी को अपनी खुशी को भूला सकती है, और दुखी व्यक्ति अपने दुःख को भूला सकता है?"
व्यापारी मुस्कुराया वह अपने सामान में से एक सोने की अंगूठी लेकर आया। उसने उस पर चार शब्द लिखा मंत्री ने सोने की अंगूठी ली। उन्होंने लेख पढ़ा और बेहद खुश हुआ। उन्होंने महसूस किया कि उनका लक्ष्य पूरा हो गया था। उसने व्यापारी को धन्यवाद दिया और सोलोमन वापस चला गया।  सुलैमान और उसके सभी अन्य मंत्रियों ने उसका मज़ाक उड़ाया। उन्होंने उन्हें परेशान किया क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि वे खाली हाथ वापस लौट आएंगे।
मंत्री ने मुस्कुराया और राजा को सोने की अंगूठी की पेशकश की। राजा ने इस पर क्या लिखा था उसे पढ़ा और अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने मंत्री को चिढ़ाना बंद कर दिया।
अंगूठी पर लिखा शब्द था " यह भी गुजर जाएगा" अचानक सोलोमन ने महसूस किया कि जीवन में सब कुछ क्षणिक है और कुछ भी स्थाई नहीं है। खुशी को दुख से बदल दिया जाएगा, और इसके विपरीत, खुशी से दुख होगा। यह एक चक्र है जो कभी भी बंद नहीं होता।
राजा मंत्री के काम से खुश हुआ, और उसे सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया।

17/3/17

आभार नहीं मानने वाला आदमी..

        राजा अपने दरबार में एक प्रसन्न मुद्रा में था।सभी दरबारि खुशी से बातें कर रहे थे अचानक राजा ने एक सवाल पूछा, "दुनिया में सबसे अधिक 'कृतघ्न' (आभार ना मानने वाला) व्यक्ति कौन है?"
लोगों ने इस सवाल का जवाब अलग-अलग तरीकों से  देने का प्रयास किया। उन्होंने कई उदाहरण दिए। लेकिन राजा संतुष्ट नहीं था।
उनके बुद्धिमान मंत्री रामानुज शांत थे। राजा ने उस समस्या को हल करने के लिए कहा। रामानुज ने कहा कि वह अगले दिन जवाब देंगे।
सवाल दिलचस्प था सभी सही जवाब जानने के लिए उत्सुक थे, तो अगले दिन, अदालत भरा हुआ था। राजा ने उसी प्रश्न को दोहराया।
रामानुज ने जवान आदमी की ओर इशारा किया और कहा, "महामहिम! वह मेरा दामाद है और दुनिया का सबसे ज्यादा तघ्न (उपकार न मानने वाला) व्यक्ति दामाद है।"
राजा ने पूछा, "कैसे?"
रामानुज ने कहा, "मैंने अपनी बेटी का विवाह प्रेमपूर्वक इनके स्स्थ किया।  मैंने अपनी बेटी को उनके लिए सबसे अच्छा उपहार माना।" मैंने दहेज की तरह बहुमूल्य चीजें भी प्रस्तुत कीं, लेकिन वह न तो मेरी बेटी से संतुष्ट हैं और न ही उसे दी गई संपत्ति के साथ। वह हमेशा शिकायत करते हैं, वह एक गहरे और अंधेरे कुएं की तरह है जो कभी भी पूरी तरह भरे नहीं हो सकता। यही कारण है कि एक दामाद सबसे कृतघ्न व्यक्ति है। "
राजा क्रोधित हो गया और रामानुज के दामाद को मौत तक फांसी पर लटकाने का आदेश दिया।
रामानुज का  दामाद चौंक गया था। रामानुज भी घबराए हुए थे, लेकिन धैर्य नहीं खोया।  तत्काल उन्होंने कहा, "महामहिम, मैंने एक उदाहरण के साथ आपके प्रश्न का उत्तर दिया है। मैंने कहा था कि एक दामाद दुनिया में सबसे कृतघ्न व्यक्ति है। सभी दामाद कृतघ्न, हैं और न सिर्फ मेरा। दामाद,यहां तक कि, 'मैं' और 'आप' भी। आपके फैसले के अनुसार हर किसी को मृत्यु तक फांसी दी जानी चाहिए। महामहिम, यह आदेश आप पर भी लागू होगा। "
राजा ने अपनी गलती का एहसास किया और आदेश को रद्द कर दिया।
अगर आपको यह कहनी अच्छा लगा हो Like जरूर करें। 

15/3/17

विचारशील राजकुमार -सिद्धार्थ

सिद्धार्थ राजा शुध्दोधन के एकमात्र पुत्र था। उनकी मां का नाम महामाया था। उनकी पत्नी का नाम यशोधरा था। राजा राजकुमार सिद्धार्थ से बहुत प्यार करता था महल में सभी सुख और विलासिता उपलब्ध थी। राजकुमार ने महल में बाल्यावस्था, किशोरावस्था और युवास्था को बिताया था।  इसलिए वह बुढ़ापे, बीमारी और मौत के बारे में कुछ नहीं जानता था। उसे महल के बाहर के लोगों की स्थिति के बारे में पता नहीं था।
एक बार जब राजकुमार महल के बाहार जाने के लिए और दुनिया को देखना चाहता था।  तब राजा ने अपनी अनुमति दे दी।
           राजकुमार महल से बाहर आया शहर को अच्छे से  सजाया गया था, लोग अच्छे कपड़ों में थे उनके कपड़े उज्ज्वल थे। सभी पुरुष, महिला और बच्चे बहुत  खुश थे। लड़कों ने राजकुमार पर फूल बरसा रहे थे।  राजकुमार का हर जगह गर्मजोशी से स्वागत किया गया, सड़कों और घरों में साफई की गई थी।  पेड़ों को झंडे के साथ ढक दिया गया था। शहर में मूर्तियों को सोने के साथ कवर किया गया था कपील्वस्तू शहर एक परियों का देश जैसा दिख रहा था  यह आकर्षण से भरा था।
दुर्भाग्य से, राजकुमार ने एक बदसूरत बूढ़ा आदमी को देखा, वह गंदा और फटा कपडा  पहन रखा था। सिद्धार्थ ने अपने सारथी से आदमी के बारे में पूछा। सारथी ने उनसे कहा कि व्यक्ति बुढ़ापे की वजह से कमजोर हो गया है, उन्होंने यह भी कहा कि बुढ़ापा सभी के पास आ जाएगा, सुनकर राजकुमार उदास हो गए। उसने अपने सारथी को महल में लौटने का आदेश दिया
एक दिन, राजकुमार ने फिर से शहर जाने की अनुमति के लिए विनती की दूसरी यात्रा में उन्होंने एक बीमार आदमी को देखा जो मदद के लिए रो रहा था।
राजकुमार ने अपने नरम हाथो से उस बीमार व्यक्ति को सराहा उस बीमार व्यक्ति को देखने में परेशानी हो रही थी।
जब राजकुमार आगे चला गया तो उन्होंने एक व्यक्ति का मृत शरीर देखा। मृतक के रिश्तेदार रो रहे थे और मृत शरीर को एक चिता  पर रखा गया था। थोड़े समय बाद उसे जला दिया गया यह राख में बदल गया।                    राजकुमार का ह्रदय दुःख से भर गया था।  वे जीवन की वास्तविकता को जान गए थे,और दुख का हल निकालने के लिये महल का त्याग कर दिया।
तब ज्ञान प्राप्ति के लिए वन में कठोर तपस्या की। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् वे गौतम बुद्ध के रूप में इस
दुनिया में प्रसिद्द हुए तथा आगे चलकर नए धर्म 'बोद्ध' धर्म की स्थापना की।

14/3/17

बुरी आदतों का नतीजा

एक बार एक लोमड़ी अन्य जंगली जानवरों के साथ घने जंगल में रहते थे। कुछ जानवर गुफाओं में रहते थे और अन्य माद में रहते थे। लोमड़ी लापरवाह और दबंग था। वह पूरा दिन घूमता था। और घर बनाने की सोचता नहीं था। वह आक्रामक था और रात में रोज़ाना अन्य जानवरों के घरों पर कब्जा कर लिया करता था। यह उसका रोज़ दिनचर्या था। वह शारीरिक रूप से शक्तिशाली था, इसलिए कोई भी जानवर उसके विरुद्ध खड़ा होने की हिम्मत नहीं करता। वह अपने आप को शक्तिशाली जानवरों से दूर रखने के लिए चतुर था। उसे अपनी शारीरिक ताकत पर गर्व था अक्सर वह छोटे जानवरों के बीच में था जब वह उबला हुआ था कोई भी उसकी प्रकृति पसंद नहीं करता था। शांति प्रेम करने वाले जानवरों ने एक पंक्ति से बचने के लिए उसे विरोध नहीं किया। एक बार वह जंगल के कुछ अन्य जानवरों के साथ एक गांव से गुजर रहा था। गांव के कुत्ते भौंकने लगे थे। उन्होंने जानवरों की उपस्थिति को रेखांकित किया था। अन्य जानवरों को लोमड़ी में पूर्ण विश्वास था उन्होंने सोचा कि वह खतरे में सुरक्षा प्रदान करेगा। लोमड़ी अक्सर कहता था कि वह निडर रहे और किसी भी स्थिति का सामना कर सकता है। लोमड़ी निडर और जानवरों को बहकाया। अब कुत्ते उनके करीब थे और लोमड़ी ने यह अनुमान लगाया। कुत्तों का धनुष ज़ोरदार हो गया। लोमड़ी तेजी से चिल्लाने के लिए शुरू किया बाकी जानवरों ने सोचा कि लोमड़ी कुत्तों को भगाबी देगा । लेकिन इसके विपरीत, लोमड़ी खुद बचना चाहता था, अन्य जानवर वास्तविकता जानने के लिए आए। क्योंकि वे कुत्तों को भगाकर उसकी जान बचाई। कुत्तों ने लोमड़ी का पीछा करते हुए उन्होंने लोमड़ी के पिछले पैरों को घायल कर दिया और भाग्य ने उसका साथ दिया और पास में एक बिल देखकर वह अपने जीवन को बचाने के लिए उसमें घुस गया। 'थोथा चना बाजे घना'लगता है अब हर कोई इस नीतिवचन के अर्थ से परिचित था जानवरों ने लोमड़ी की झूठी बहादुरी के बारे में सीखा था। जब कुत्ते लौट आए, तो वह बिल से निकल गया। पशुओं ने उसे चिकित्सा सहायता प्रदान की और जल्द ही वह अपनी चोटों से निजात पा लिया। वह पुरुषों की आदत बहुत अधिक बोलते हैं क्योंकि उन्हें शर्म महसूस हुआ। लेकिन उसने आलसपन और कामचोरी की आदत को नहीं सुधारा। इसी के कारण अपने आवास का भी सुधार नहीं किया। आलस उसकी मुख्य कमजोरी थी। वह अक्सर कामना करता था कि किसी और का बिल को अपना बनाना चाहिए सर्दियों का मौसम आया।इस साल ठंड से कांप रहा था। सभी जानवर अपने घरों में थे। लोमड़ी का रहने के लिए कोई जगह नहीं था। वह खुले में रहने के लिए मजबूर हो गया था। जब गंभीर ठण्ड ने उस्की हड्डियों को कपया तो वह शरण लेने के लिए दौदने लगा। हर रात उसने एक शपथ ली कि वह अगले दिन एक बिल तैयार करेगा। वह हमेशा दिन की गर्म धूप में अपनी शपथ भूल भूल जाता था। दिन बीत चुके थे और उसने कोई भी बिल नहीं बनाया था यह मध्य शीतकाल था हवा की ठंडी झोंके उड़ रहे थे,बारिश के बून्द गिर रही थी। अचानक हवा बंद हो गई। ओलों का तूफान टूट गया। लोमड़ी आश्रय की खोज में भाग रहा था कोई भी उसकी मदद करने के लिए नहीं आया सुबह जब जानवर अपने घरों से निकल आए, तो उन्होंने देखा कि लोमड़ी मर गई। उनके हर्टर्स दया से भरे हुए थे मृत लोमड़ी को दिखाते हुए उन्होंने अपने बच्चों को बताया, आलस्य और कामचोरी का परिणाम घातक होता है।

The Result of Bad Habits

Once upon a time a fox lived in a dense forest with other wild animals. Some of the animals lived in caves and others in burrows. The fox was careless and overbearing. He used to wander throughout the day and didn't think of making a home. He was aggressive and occupied the homes of other animals daily at night to live in. It was his daily routine. He was physically mighty, so no animal dared to stand up to him. He was clever to enough to keep himself away from mightier animals. He was proud of his physical strength. Often he boased when he was among small animals. No one liked his nature. The peace loving animals didn't oppose him in order to avoid a row.
Once he was passing through a village with some other animals of the jungle. The village dogs were barking. They had sensed the presence of the animals. The other animals had full confidence in the fox. They thought that he would provide them security in danger. The fox would often say that he was fearless and would face any situation.
The fox pretended to be fearless and the animals. Now the dogs were close to them and the fox guessed it. The bow-wow of the dogs became louder. The fox began to run faster. the rest of the beasts thought that the fox would make the dogs run away. But contrary to it the fox himself wanted to escape. The animals came to know the reality as they ran away and saved their lives.
The dogs chased the fox. they wounded the hind legs of the fox Luck favoured him and seeing a burrow nearby he slipped into it to save his life.
An empty vessels sounds much. Now everyone was familiar with the meaning of this proverb. The animals had learnt about the false bravery of the fox. When the dogs returned, he came out of the burrow. The animals provided him medical aid and soon he recovered from his injuries. He mended the habit to speaking high because he felt ashamed. But he didn't reform the habit of shirking work. Laziness was his main weakness. He often wished that someone else should make his burrow.
The season of winter came. it was shivering cold that year. All The animals were in their homes. There was no place for the fox to live in. He was forced to live in the open. When the severe told ate into his bones he would run to find shelter. Every Night he took an oath that he would prepare a burrow the next day. He always forgot his own oath in the warm sun of the day. The days passed and he didn't make any burrow.
             It was mid winter. Chilly gusts of wind were blowing. A cold drizzle was falling. All of a sudden the wind stopped. A hailstorm broke out. The fox ran in search of shelter. No one came to help him.
In the morning when the animals came out of their homes, they saw the fox was dead. their harts were filled with pity. Showing the dead fox they told their young ones, The result of laziness and shirking work is fatal. 

3/2/17

आत्मविश्वास The power of selfconfidence.

            दोस्तों आज मै आप लोगों के साथ आत्मविश्वास पर कुछ विचार रखना चाहता हूँ
दोस्तों व्यक्ति जब स्वयं पर विश्वास करता है तो ही उसका आत्मबल प्रकट होता है। और जिस व्यक्ति के अंदर आत्मबल कुट-कुट कर भरा हुआ हो, वह अपने लिए अनेक अवशर उतपन्न कर लेता है और पारिस्थितियों से जूझकर सफलता पाता है। यदि हम अपने मन में अविश्वास और विफलता का विचार लाते है, तो कभी सफल नहीं हो सकते। दोस्तों इसके विपरीत जिन लोगों का खुद पर विशवास होता है, वो हमेशा सफल होते हैं। दोस्तों हमे दुनिया में अनेक उदाहरण मिलते है जो यह दर्शाते है कि व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास होने पर, उनके रास्तो पर अनेकों कठिनाई होने पर भी आगे बढ़ते चले गए तथा रास्ते स्वयं बनते चले गए। और उस व्यकि के आगे परिस्थितियों को भी हार माननी पड़ी।
            दोस्तों कुछ उदाहरण आपके पास रख रहा हूँ जो यह साबित करते है की आत्मविश्वास के बल पर ही असम्भव सा काम कर दिखाया।
             खुद पर विश्वास के कारण ही 'जॉन ऑफ़ आर्क' जैसी फ़्रांसिसी सेना का नेतृत्व एक ग्रामीण लड़की ने किया। इतना ही नहीं उसके इस प्रबल आत्मविश्वास के कारण ही फ़्रांस के राजा को भी उसके आदेशों का पालन करना पड़ा। विलियम पिट को भी जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्रि पद से हटाया गया तब उन्होंने डेवनशायर के ड्यूक से बड़े ही आत्मविशवास के साथ कहा था कि 'इस देश को मैं ही बचा सकता हूँ, इस काम को मेरे शिवा कोई दूसरा नहीं कर सकता ' 11 हफ्ते तक इंग्लैण्ड में बिना प्रधानमंत्री के ही काम चलता रहा और अंत में 'पिट' को ही योग्य मानते हुए शासनाधिकार सौप दिया गया।
                 इसी तरह नेपोलियन, लूथर, बिस्मार्क, और सेवनारोला जैसे सामान्य लोग अपने प्रबल आत्मविशवास के कारन ही महान लोगों की श्रेणी में आ गए और अपने जीवन में आश्चर्यजनक सफलताएं प्राप्त कर सके।
                  प्रसिद्ध मानव व्यवहार विशेषज्ञ ग्रेस फ्लेमिंग,आत्मविश्वास को सफलता की कुंजी मानते हैं। अपनी चर्चित पुस्तक 'बिल्डिंग सेल्फ कॉन्फिडेंस' में उन्होंने कहा की 'यदि मनुष्य अपना आत्मविश्वास बढ़ाना चाहते हैं तो तो सबसे पहले अपनी कमजोरियों को पहचाने तथा उन्हें दूर करने की खुद में शक्ति पैदा करें। ये कमजोरियाँ हमारे व्यक्तित्व में किसी भी प्रकार के हो सकती हैं, जैसे- हमारा खराब स्वास्थ्य, रूप -रंग, पारिवारिक पृष्ठभूमि, वजन, गुण, बुरिआदतें, अथवा गरीबी आदि कुछ भी हो सकता है। हमें अपनी कमजोरियों के तह में जाकर इनको दूर करने का कारगर उपाय खोजना चाहिए। अपनी इन कमजोरियों का मुकाबला करने में सबसे पहले हमें डर लगेगा, लेकिन हम डर को दूर कर के ही हम अपनी कमजोररियों को दूर कर सकेंगे और अपने आत्मविश्वास को बढा सकेंगे।'  
                    दोस्तों कमजोरियों को जानना ही जरुरी नहीं है, बल्कि इनके भीतर शक्ति को तलाशना भी आवश्यक है। हर व्यक्ति दुर्लभ प्रतिभा को लेकर संसार में आता है। उस नैसर्गिक प्रतिभा से आत्मविस्वास की पूंजी में विस्तार संभव है। 

 दोस्तों इस लेख को पढ़ने और अपना कीमती समय देने के लिये धन्यवाद। 
अगर आपको अच्छा लगा हो तो like जरूर करें।   

28/1/17

सच्चाई और ईमानदारी की मिशाल।


             आज मै आप लोगो के साथ एक सच्ची घटना का  उल्लेख करना चाहता हूँ। आशा है की आप लोगो को जरूर अच्छा लगेगा। 
              अमेरिका के छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में एक बालक रहता था। मेहनत-मजदूरी करके उसे जो भी मिलता था, वह उनसे अपना खर्च चलाया करता था। 
उसको एक दिन पता चलता है कि उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक व्यक्ति रहता है, जिसके पास जॉर्ज वाशिंगटन का जीवन चरित्र है। उसने उस व्यक्ति से पढ़ने के लिए वह पुस्तक मांग ली, पर जब लौटाने का दिन आया तो उस दिन भयंकर बारिश होने लगी। उस बरसात में वह पुस्तक भीग गई। भीगने की वजह से वह वह पुस्तक पूरी तरह से खराब हो गया। वह बालक बहुत दुखी हुआ, फिर उसने उस व्यक्ति से बोला-- "मैं आपको यह पुस्तक खरीदकर तो नहीं दे सकता, पर इसके बदले का परिश्रम करके मैं इसका मूल्य अवश्य चूका दूंगा। " वह व्यक्ति उसकी श्रमशीलता व् ईमानदारी से अत्यन्त प्रभावित हुआ। उसने वह पुस्तक भेंटस्वरूप दे दी। दोस्तों क्या आप जानते है की यह बालक कौन था? यही श्रमशील व ईमानदार बालक आगे चलकर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के रूप में प्रसिद्ध हुआ।  

खंडगिरी और उदयगिरी गुफाएँ – इतिहास की पत्थरों पर उकेरी कहानी

     स्थान: भुवनेश्वर, ओडिशा      प्रसिद्धि: प्राचीनजैन गुफाएँ, कलात्मक शिल्पकला, ऐतिहासिक महत्व  परिचय भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ...