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आत्मसंतुष्टि प्रगति में बाधक



          आज मैं एक कहानी के माध्यम से आप लोगों के साथ एक बात कहना चाहता हूँ। कि कैसे हम काम चलाऊ जीवन यापन करने की मानसिकता एक व्यक्ति को अपने जीवन में आगे बढ़ने से रोकता है।
          पुराने समय की बात है उन दिनों शिक्षा ग्रहण करने के लिए लोगो को अपने गुरु के आश्रम में ही रहकर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती थी। जहाँ शिष्य को तमाम जानकारी चाहे वो व्यवहारिक हो या सैधन्तिक सभी वहीं से सिखनी होती थी।
            गुरु अपने शिष्य के साथ प्रवचन देने के लिये नगर भ्रमण के लिए निकल गए। काफी दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। एक दिन की बात है भ्रमण कारते-करते शाम हो गई। तब गुरु ने अपने शिष्य से कहा कुछ समय बाद रात होने वाली है, और आगे का रास्ता जंगल से होकर गुजरता है। अतः हमारा रात में सफर करना ठीक नहीं होगा। आज रात हम यहीं किसी के घर में बिताएंगे।
            कुछ ही दुरी पर एक टुटा-फूटा झोपडी नुमा घर नजर आता है। वे वहीँ रात बिताने का निर्णय करते है और घर में प्रवेश करते है। घर का मालिक भला व्यक्ति था उसने अपने सामर्थ्य के अनुसार उनका आदर सत्कार करता है।
             कुछ समय बाद गुरु ने उस व्यक्ति से कहा जब हम आपके यहाँ आ रहे थे पास में ही बहुत अच्छी उपजाऊ भूमि दिखी जिसमें वर्तमान में कुछ भी फसल नही लगा है, वह भूमि किसकी है? इसके जवाब में उस व्यक्ति ने कहा महोदय वे सभी भूमि मेरी ही है। तो गुरु ने प्रश्न किया कि आप कि आय का साधन क्या है? तो उस व्यक्ति ने उत्तर दिया की मेरे पास एक भैस है जो अच्छी-खासी दूध देती है। मैं उसी दूध को बाजार में बेचता हु जिससे कुछ पैसे मिल जाते है। तथा कुछ मेरे लिए भी बच जाता है, जिसे मै भोजन के रूप में ग्रहण करता हूँ। अब आप ही बताइए भला मुझे कृषि करने की क्या आवश्यकता है।
             जब गुरु- शिष्य सोने जा रहे थे तभी गुरु ने शिष्य से कहा आज हमें भोर में जल्दी उठना है, साथ ही इस व्यक्ति का भैंस को चोरी करके साथ ले जाएंगे। शुरू में तो तो शिष्य को अपने गुरु की बात अजीब लगा। किन्तु उसका विरोध नहीं कर पाया। सुबह दोनों भोर में ही उठकर चल दिए तथा उस व्यक्ति के भैंस को भी चोरी कर साथ ले गए और पहाड़ी से नीचे गिराकर मार दिया।
             कुछ दिनों के बाद शिष्य की शिक्षा पूरी हो गई। वह अपने काम-धंधे में अच्छी तरक्की करता है,और एक बड़ा आदमी बन जाता है। कुछ वर्षों के बाद उसी रास्ते से गुजर रहा था, तभी उसे उस आदमी का ध्यान आता है जिसके यहां उन्होंने रात गुजारी थी। उसे उस आदमी पर बहुत दया आ रहा था उसने सोचा की चलो आज उस व्यक्ति की कुछ आर्थिक सहायता किया जाए, हम लोगो ने उसकी आय के साधन उस भैंस को मार दिया था। यह सोचते हुए उस व्यक्ति से मिलने के लिए उसके घर की तरफ जाने लगा। जाते हुए उसने देखा की जहाँ पर बेकार भूमि पड़ी थी वहां हरे भरे फसल लहरा रहे थे। उस जमीन पर कई फलदार वृक्ष लगे थे।
               जब वहां पहुचा तो उस झोपड़ी के स्थान पर एक आलिशान घर को पाया। उसने सोचा वह व्यक्ति शायद अपना घर-जमीन बेच कर कहीं अन्य जगह चला गया होगा। उसने यह सोचते हुए दरवाजा खटखटाया जब घर मालिक ने दरवाजा खोला तो वह आश्चर्य से उस व्यक्ति को देखने लगा। बातो ही बातो में जब उसने पूछा की क्या आप मुझे पहचानते हैं कुछ वर्षो पूर्व मैं अपने गुरु जी के साथ यहां रात बिताने के लिए रुका था। तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया की मैं आप लोगो को कैसे भूल सकता हु। किन्तु आप लोगो से शिकायत है की आप लोग बिना बताए ही यहां से चले गए थे। और हाँ उसी दिन एक और दुखद घटना हुई थी पता नहीं कैसे मेरी भैंस पहाड़ी पर चली गई और वहां से गिर कर मर गई।
                 उस शिष्य ने उससे पूछा फिर ये चमत्कार कैसे हुआ आप इतने धनवान कैसे हो गए। तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया की जब मेरी भैंस मर गई तो मेरे सामने जीविका चलाने का संकट पैदा हो गया था। तब मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करु तभी मन में ख्याल आया की चलो पेट भरने के लिए खाली जमीन पर खेती किया जाए और थोड़े से जमीं पर खेती कार्य शुरू किया। जब अच्छी पैदावार मिलने लगी तो सोचा क्यों न इसे अच्छी आमदनी का जरिया बनाकर किया जाए। यही सोचकर बागवानी, फल सब्जी की खेती भी शुरू कर दिया जिससे अच्छी आमदनी होने लगी, जिसका नतीजा आप के सामने है। यह सुनकर वह आदमी भहुत खुश हुआ और आज उसे समझ में आ गया था की उसके गुरूजी ने क्यों उस दिन उस भैंस को मार दिया था।
                 
                 इस कहानी से यह सिख मिलती है की हम जब अपने काम से संतुष्ट हो जाएंगे कुछ नया नही सोंचेंगे तब तक हम जहां हैं वही रहेंगे।     

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