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चंद्रमा पर खरगोश -कहानी

इस कहानी में एक खरगोश के त्याग के बारे में बताया गया है, जो एक भूखे सन्यासी का भूख मिटाने के लिए स्वयं
उसका भोजन बनने के लिए तैयार हो जाता है।

एक खरगोश एक जंगल में रहता था, उसके दो दोस्त थे- एक बंदर और एक उल्लू। वे तीनो बहुत समय से एक साथ रह रहे थे।
एक दिन, एक साधु वन में आया वह बहुत थका हुआ था, और भूखा भी था।
उल्लू मछली को पकड़े हुए था, साधु उसके पास गया "मुझे भूख लगी है," उन्होंने कहा।
मेरे पास कुछ मछलियां हैं,उल्लू ने कहा, "कृपया उन्हें ले लो।"
 "लेकिन मैं मछली नहीं खाता हूं," साधु ने कहा।
"क्या कुछ और है?"
 "माफ करना," उल्लू ने कहा "
"मेरे पास और कुछ नहीं है।"
बंदर सूखे फल खा रहा था
साधु उसके पास गया।
साधु ने कहा, "मैं बहुत भूखा हूं"
"क्या आप मुझे कुछ खाना दे सकते हैं?"
"मेरे पास कुछ सूखे फल हैं," बंदर ने कहा।
"ओह! लेकिन मैं उनमें से बहुत चाहता हूं," साधु ने कहा,
"मैं बहुत भूखा हूँ।"
बंदर ने कहा, "मुझे खेद है, मेरे पास केवल कुछ ही हैं।"
"'मैं फिर खरगोश से पूछता हूं,' ऐसा साधु ने कहा।
खरगोश हरे घास खा रहा था
साधु उसके पास गया।
"मुझे बहुत भूख लगी है, साधु ने कहा।"
"कृपया, क्या आप मुझे कुछ खाना दे सकते हैं?"
खरगोश ने कहा, "मेरे पास बहुत घास है"।
"लेकिन मैं घास नहीं खाता !" एक मुस्कुराहट के साथ साधु ने कहा
"क्या आपके पास कुछ और है?"
"नहीं, मुझे खेद है," खरगोश ने कहा
साधु ने कहा, "मैं बहुत भूखा हूं, और मैं थका हुआ हूं"।
"अब मैं क्या करूँ?"
खरगोश यहाँ एक मिनट के लिए सोचा और कहा "रुकिए,"। "कृपया दूर मत जाओ।"
खरगोश कुछ लकड़ी लाया।उसने एक साथ पत्थर मारकर आग जला दी। "आप मुझे खा सकते हैं," खरगोश ने कहा।
और आग में कूद गया। लेकिन आग उसे नहीं जलाई! वह बाहर देखा, लेकिन साधु वहाँ नहीं था एक देवदूत उसके सामने खड़ा था
उसने अपनी बाहों में खरगोश को लिया, और उड़ गए उसने उसे चंद्रमा पर रखा, चाँद पर देखो आप अभी भी इस पर खरगोश को देख सकते हैं।

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