दोस्तों मेरे आज के कहानी का शीर्षक है कि आप कुछ भी करिए सभी व्यक्तियों को या। सभी लोगों को आप एक साथ खुश नहीं कर सकते है। आप चाहे जो भी कर लीजिए आप कितना भी कुछ कर लीजिए किसी ना किसी के लिए आप में कुछ दोष या कुछ बुराई या कुछ कमी जरूर नजर आएगी। तो मेरे कहने का मतलब यह है, कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से परफेक्ट नहीं है या संपूर्ण नहीं है ठीक है दोस्तों इस इस संबंध में आपको मैं एक कहानी के माध्यम से यह बात बताना चाहूंगा, है तो दोस्तों बहुत कुछ दिन पहले की बात है कि किसी गांव में एक किसान रहता था। वह किसान एक दिन अपने पुत्र के साथ अपने कृषि उत्पाद को विक्रय के लिए बाजार जाता है, बाजार में उसके उस सामान की अच्छी कीमत मिलती है उसके बाद वे दोनों जब वापस आते रहते हैं तो उनको रास्ते में या यूं कहिए बाजार में ही पशुओं के मंडी में एक विक्रय के लिए गधा दिखाई देता है। पिता पुत्र दोनों आपस में सलाह करते हैं और सोचते हैं क्यों ना हम इस गधे को खरीद लें ताकि हमारे कृषि संबंधी जो भी उत्पाद होगा उनको उठाने के लिए हमारी सहायता हो जाएगी या फिर हम हमें मदद मिल जाएगी ठीक है। इसके बाद वे दोनों उस गधे को खरीद लेते हैं उसके बाद दोनों अपने घर के लिए वापस आने लगते हैं। रास्ते में जब दोनों वापस आते रहते हैं पिता आगे आगे चलता है गधा बीच में और उसका पुत्र गधा को हांकता हुआ पीछे पीछे चलता है। तो रास्ते में एक व्यक्ति मिलता है, और बोलता है कि यह दोनों कितने बेवकूफ हैं इस गधे में सवारी करने के बजाय इनको दोनों पैदल लेकर जा रहे हैं। तो दोनों विचार करते हैं और सोचते हैं सही बात है कि हमें किसी एक को इस पर सवारी करनी चाहिए तो ऐसे सोच कर पिता सबसे पहले अपने पुत्र को बिठा देता है और धीरे-धीरे गधे को खींचते हुए चलने लगता है चलते हो हुए आगे कुछ दूर चलने के बाद एक व्यक्ति मिलता है और उनको बोलता है कि पुत्र कितना बेशर्म है इसका पिता पैदल चल रहा है और यह मूर्ख गधे पर बैठा है जबकि होना यह चाहिए इसके पिता को गधे पर सवारी करनी चाहिए और खुद को पैदल चलना चाहिए उसके बाद पुत्र गधे से उतर जाता है, और अपने पिता जी को बोलता है कि आप इसकी सवारी करिए और मैं पैदल चलता हूं अपने पिता को बोलता है। कुछ दूर चलने के बाद एक व्यक्ति और मिलता है, और टोकते हुए कहता है कि पिता बहुत ही निर्दई है इसका पुत्र इस भरी दोपहर में धूप में पैदल चल रहा है और यह गधे पर आराम से बैठकर जा रहा है तो फिर दोनों सोचते हैं कि हां ए तो सही बात है उसके बाद दोनों दोनों निर्णय लेते हैं कि हम दोनों एक साथ इस गधे की सवारी करते हैं। उसके बाद दोनों उस गधे पर सवार हो जाते हैं। कुछ दूर ऐसे चलने के बाद एक व्यक्ति और मिलता है वह उन दोनों को गधे पर बैठे देख के बोलता है यह दोनों आदमी कितने निर्दई हैं इस बेचारे बेजुबान जानवर पर दोनों सवारी कर रहे हैं जबकि होना यह चाहिए कि इन दोनों को पैदल चलना चाहिए और अपने साथ गधे को भी ले जाना चाहिए ठीक है। तो यह सोच यह सुनकर दोनों फिर अचंभित हो जाते हैं और दोनों को समझ में नहीं आता कि अब हमें क्या करना चाहिए जब पुत्र बैठता है तब भी लोग बोलते हैं जब मैं बैठता हूं तब भी लोग बोलते हैं जब दोनों बैठते हैं तब भी लोग बोलते हैं। तब हम आखिर में क्या करें तो दोनों आखिर में निर्णय करते हैं कि हम दोनों पैदल चलते हैं और गधे को अपने साथ लेकर चलते हैं। तो यह सोच कर दोनों नीचे उतर जाते हैं और अपने साथ धीरे-धीरे पैदल चलते हुए गधे को भी साथ ले चलते हैं। कुछ दूर ऐसे ही चलते हैं तो फिर एक व्यक्ति मिलता है और उनसे बोलता है कि दोनों कितने बेवकूफ हैं कितने पागल हैं कि दोनों गधे को पैदल चला रहे हैं तो होना यह चाहिए कि दोनों में से किसी को सवारी करना चाहिए लेकिन दोनों पिता-पुत्र का जो अनुभव था वह अच्छा नहीं था। ठीक है उसके बाद दोनों फिर सोचते हैं कि अब क्या करना चाहिए हमें कुछ न कुछ तो करना चाहिए ताकि हमें लोगों का लोगों की बात ना सुनना पड़े यह सोचकर पिता पुत्र दोनों यह निर्णय लेते हैं कि हम इस गधे को ही अपने कंधे पर उठाकर ले चलते हैं जिससे कि लोग हमें कुछ नहीं कहेंगे। यह सोचकर दोनों उस गधे को एक लकड़ी की बल्ली पर दोनों उसको बांध के टांग लेते हैं और दोनों अपने काँधे पर उठाकर के उसको चलने लगते हैं। तो ऐसे चलते चलते कुछ दूर चलते हैं तो कुछ दूर चलने के बाद उन्हें एक व्यक्ति फिर मिलता है और बोलता है कि यह दोनों महामूर्ख हैं इस गधे की सवारी करने के बजाय ये दोनों इस गधे को ढो कर ले जा रहे हैं इनसे मूर्ख इस दुनिया में कोई नहीं है उसके बाद पिता पुत्र दोनों उस गधे को नीचे उतार देते हैं ।और उनके समझ में यह आ जाता है कि इस दुनिया में सभी व्यक्तियों का देखने का नजरिया अलग अलग होता है। हम एक साथ सभी व्यक्तियों को अपने हिसाब से खुश नहीं रख सकते किसी व्यक्ति में जो हम काम कर रहे हैं वह किसी को सही लग सकता है लेकिन अन्यत्र किसी व्यक्ति को वही काम गलत लग सकता है।इसीलिए दोस्तों मैं आप को आप लोगों से यह बोलना चाहूँगा कि हम जो भी काम करें अपने दिल से करें बस समय यह उसके बारे में यह सोचना चाहिए कि हमारे उसका हमसे किसी और को नुकसान ना हो और हमारे जो काम है वह किसी प्रोडक्टिव काम हो।तो हम उस काम को जल्द से जल्द स्टार्ट कर दें। नहीं तो इसी तरह से होते रहेगा ।
लगभग 200 साल पहले राजा कृष्ण चंद्र बंगाल के एक हिस्से पर शासन करते थे। उनके अदालत में गोपाल भाण्ड नाम का मशखरा था। हालांकि गोपाल भांड ने किताबों का अध्ययन नहीं किया था, किन्तु वह बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था। एक बार, एक बहुत ही दक्ष आदमी, महाग्यानी पंडित अदालत में आया। उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं में स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से बात की। उन्हें दर्शन और धर्म का अच्छा ज्ञान था। उसने सभी प्रश्नों का बहुत बुद्धिमानी से उत्तर दिया लोग उससे बात करने काबिलियत से आश्चर्यचकित थे। लेकिन कोई भी उनकी मातृभाषा की पहचान नहीं कर सका। जब भी उन्होंने उससे पूछा जाता, वह अहंकार से मुस्कुराता और कहता, "वास्तव में जो बुद्धिमान व्यक्ति होगा वह मेरी मातृभाषा को आसानी से जान जायगा।" राजा कृष्ण चंद्र बहुत परेशान था। इसलिए उन्होंने इसके के लिए एक इनाम की घोषणा की, जो पंडित की मातृभाषा को बता सकता था। सभी विद्वानों ने ध्यान से महाज्ञानी की बात सुनी। लेकिन कोई भी उसकी मातृभाषा की पहचान नहीं कर सका "आप पर शर्म आनी चाहिए", राजा ने गुस्से में कहा। सभी विद्वान चुप थे। गोपाल भांड झटके स...
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