सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हार मत मानिये।

साथीयो हमें अपने जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिये।हमें अपने जीवन में रोज कोई न कोई समस्या का सामना करना पड़ता है। और हम उन समस्या का समाधान करने की कोशिश करते है।साथियो इन समस्यायों में कई ऐसी समस्याएं  होती है जिनका समाधान हमारे अपने हाथ में होता है। तथा कई समस्या तो ऐसी होती हैं जिनका समाधान हमारे हाथो में नहीं होता। फिर भी हम परेशान होते हैं।
हमारे जीवन में कोई भी समस्या आए हमें उसका डट कर सामना करना चाहिये। कभी भी हमें उससे भागना नहीं चाहिये तथा उसको दूर करने का रास्ता खोजना चाहिये। जब भी किसी समस्या से अगर हम हार के बैठेंगे उस दिन से सारे रास्ते भी बंद हो जाएंगे है। और यकिन मानीय साथियो अगर एक बार हम अपने दिमाग में बैठ लिया तो उस दिमाग में उस समस्या का समाधान के लिये कोई नया आइडिया भी आना बंद हो जाएगा और अगर आइडिया आना बंद हो जायगा तो हम कभी उसका हल नहीं खोज पायेगे। 
साथियो इस बात को एक उदाहरण के माध्यम से समझतेहै। साथियो यह कहानी जापान से सम्बंधित है, जापानियों को मछलिया खाना बहुत पसंद है इसी वजह से वहाँ मछलियो का अंधाधुंध शिकार हुआ और एक समय आया जब जापान के तट से मछलिया ही लगभग समाप्त हो गई। अब वहाँ के लोगो के लिए यह समस्या कड़ी हो गई की अब मछलिया कहा से मिले। 
अब इसी समस्या के समाधान के लिये एक फिसरिज कंपनी सामने आई और उसने क्या किया की वह अब दूर समुद्र से मछलिया पकड़ कर सप्लाई करने लगा। लेकिन उसमे भी एक समस्या थी की मछलियो को पकड़ने में तथा लोगो तक पहुचने में काफी समय लग जाता था ,जिससे मछलिया ताजे नहीं होते थे जिससे  वो स्वाद लोगों को नहीं मिला जिससे लोगों ने लेना बंद कर दिया। 
अब कंपनी के सामने यह समस्या खड़ी हो गई की मछलियो को ताजा कैसे रखा जाय।  इसके समाधान में कंपनी ने अपने जहाज में एक विशाल रेफ्रिजरेटर रखवाया और सभी मछलियो को पकड़ कर उसमें रखवाया तथा बाजार में पहुँचया इस बार तो मछलिया पहले से ताजि तो थी लेकिन लोगो को उन मछलियो का नेचुरल टेस्ट नहीं लगा अतः इस बार भी लोगो ने इस आइडिया को नकार दिया। 
अब कंपनी  के  सामने यह समस्या खड़ी हो गई कि मछलियो को अपने प्राकृतीक अवस्था में कैसे रखा  जाय। फिर कंपनी ने इसका  यह उपाय खोजा की जहाज में ही एक विशाल पानी का टैंक रखवाया और उसी में सभी मछलियो को डलवाया और लोगों तक पहुचाया।  इस बार लोगो को कुछ अच्छा तो मिला लेकिन उस टैंक में कम स्थान में अधिक मछलियो को रखने से  मछलियो में कोई मोमेंट नहीं होने के कारण मछलियां लगभग मरने की हालात में थी तथा इस बार भी लोगो ने इसे पसन्द नहीं किया। 
अब कंपनी के पास यह समस्या कड़ी हो गई की या तो इस समस्या का कोई कारगर उपाय खोजे, या तो अपनी कंपनी को बंद करे। अब कपनी को यह बात मंजूर  नहीं था की इतने निवेश के बाद कंपनी को बंद करना पड़े। अतःकंपनी ने इसका भी समाधान खोज निकला इस बार क्या किया क़ि टैंक में एक शार्क मछली डलवा दिया इससे क्या हुआ कि शार्क ने कुछ मछलियो को तो खा लिया और जो मछलियाँ बची थी वो शार्क के डर से इधर - उधर भाग रहे थे। जिससे उनमे प्राकृतिक हलचल बानी रही। और वो एकदम तजा थी। और जब लोगो तक पंहुचा तो उनको वही प्राकृतिक स्वाद का अनुभव हुआ तथा लोगों ने हाथो हाँथ लिया। 
इस प्रकार लोगो  की मछली की समस्या समाप्त हो गई। तथा कंपनी भी इस आइडिया से बंद होने से बच गई। 
साथियो हम इस उदहारण से यह प्रेरणा ले सकते हैं की है अपनी समस्या का हल खोजने का प्रयास करते रहना चाहिये। हमें कभी हार नहीं माननी चाहिये। 
             
           इस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद। 
आपकी जो भी प्रतिक्रया हो या कोई सुझाव हो तो कृपया जरूर कॉमेंट करे। मुझे आपकी कमेंट का इंतजार रहेगा अगर अच्छा लगे तो like करें।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गोपाल भांड और महाज्ञानी

लगभग 200 साल पहले राजा कृष्ण चंद्र बंगाल के एक हिस्से पर शासन करते थे। उनके अदालत में गोपाल भाण्ड नाम का मशखरा था। हालांकि गोपाल भांड  ने किताबों का अध्ययन नहीं किया था, किन्तु वह बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था। एक बार, एक बहुत ही दक्ष आदमी, महाग्यानी पंडित अदालत में आया। उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं में स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से बात की। उन्हें दर्शन और धर्म का अच्छा ज्ञान था। उसने सभी प्रश्नों का बहुत बुद्धिमानी से उत्तर दिया लोग उससे बात करने काबिलियत से आश्चर्यचकित थे।  लेकिन कोई भी उनकी मातृभाषा की पहचान नहीं कर सका। जब भी उन्होंने उससे पूछा जाता, वह अहंकार से मुस्कुराता और कहता, "वास्तव में जो बुद्धिमान व्यक्ति होगा वह मेरी मातृभाषा को आसानी से जान जायगा।" राजा कृष्ण चंद्र बहुत परेशान था।  इसलिए उन्होंने इसके के लिए एक इनाम की घोषणा की, जो पंडित की मातृभाषा को बता सकता था। सभी विद्वानों ने ध्यान से महाज्ञानी की बात सुनी। लेकिन कोई भी उसकी मातृभाषा की पहचान नहीं कर सका "आप पर शर्म आनी चाहिए", राजा ने गुस्से में कहा।  सभी विद्वान चुप थे। गोपाल भांड झटके स...

ताजमहल का इतिहास.HISTORY OF TAJMAHAL.

                                 ताजमहल का इतिहास   आज मैं आप लोगों के साथ ताजमहल से जुडी बहुत सारी जानकारियां दुँगा जिसके बारे में कम ही लोगो को पता होगा।                     साथियों जैसा की मैंने पिछले लेख में आपको यह बता चूका हूँ क़ि इतिहास में ताजमहल का वर्णन रोजा -ए - मुनव्वर (चमकती समाधि) के रूप में हुआ है। समकालीन इतिहासकारों जिनमें शाहजहाँ के दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने किताब ' पादशाहनामा'  में इसका वर्णन किया है। अपने इस लेख में ताजमहल के निर्मांण के सम्बन्ध में विस्तार से उल्लेख किया है। बुनियाद और नींव -: शाहजहाँ के गौरावशाली राज्यारोहण के पांचवे वर्ष (जनवरी,1632) में बुनियाद डालने के लिए यमुना के किनारे खुदाई का कम आरम्भ हुआ। बुनियाद खोदने वालों ने पानी के तल तक जमीन  खोद डाली। फिर राजमिस्त्रियों ने तथा वास्तुकारों ने अपने विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए इसकी मजबूत बुनियाद डाली तथा पत्थर ...

एकाग्रता:सफलता सफलता का मूलमंत्र

              सफलता के लिए एकाग्रता अनिवार्य  दोस्तों आज मै एक कहानी के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास का रहा हूँ।वैसे यह कहानी तो बहुत पुरानी है, लेकिन इसका जो सार है वह आज भी प्रासंगिक है।                 यह कहानी भारतीय पौराणिक कथा महाभारत के एक प्रसंग पर आधारीत है। गुरु द्रोणाचार्य अपने आश्रम में सभी शिष्यों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दे रहे थे। गुरु द्रोणाचार्य ने  एक बार अपने सभी शिष्यों से उनकी परीक्षा लेना चाहा। उन्होंने अपने सभी शिष्यों से पेड़ पर बैठी चिड़िया के आँख पर निशाना लगाने को कहा। तीर छोडने से पहले अपने सभी शिष्यों से बारी-बारी से एक प्रश्न किया,और पूछा की बतओ तुमको पेड़ पर क्या क्या  दीख रहा है ?तब किसी शिष्य ने कहा पेड़ की डाली ,पत्ति आदि। किसी ने कहा पेड़ पर बैठी चिड़िया। एक ने कहा गुरुजी  मुझे आप, सभी शिष्य, चिड़िया सब दिख रहा है । लगभग सभी शिष्यों का यही जवाब था। किन्तु जब अर्जुन की बारी आई तो गुरु ने अर्जुन से भी वही सवाल दोहराया तो उसने कहा- गुरुदेव मुझे सिर्फ चिड़िया...